अफसाना-ए-हस्ती में तो सभी जुर्म किया करते हैं
इक जुस्तजू-ए-शौक हमने भी कर लिया तो
दिलों के कत्ल की सज़ा हमको सुना दी
इसपर जुरअते निगाह काफी न थी जो आपने
कातिलों के हाथ में तलवार थमा दी
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मखमल में लिपटे कुछ लम्हे मिले हैं, कहते हैं दर्दे-दिल से दूर हैं। नज़र में बारीकियां कुछ हमने भी सीखी जहां, रूमाल उनके कुछ भीगे मिले हैं ।
5 टिप्पणियां:
adaab arj karta hu.
bda hi khubsoorat jurm kar baithe hai aap.
it's really nice
keep it on
Rakesh Kaushik
achchi rachana hai
jaari rakhain
वाह जी वाह!! बहुत उम्दा.
behtareen rachna....
बहुत ही अच्छी बात कही हैं आप ने ,अच्छी भी और सची भी . आप ने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी की बहुत अच्छा लगा सुक्रिया
निर्मल शर्मा
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