कुछ तुम्हारे पास तो
कुछ हमारे पास है
सुप्त फ़िज़ां में झंकॄत
गीत कोइ लयबद्ध है
जानकर बने अन्जान तो
राज़ कोइ दरकार है
विखण्डित क्षितिज पर
अम्बर झुका खुद्दार है
कोप-प्रीति प्रकृति दिखाती
आज सूखा तो कल बाढ़ है
चार दिन की जिन्दगी में
एक दिन बचा एक रात है
छोड़ो मज़हब नीति के झगड़े
नाद करो हम सब साथ हैं
कुछ तुम्हारे पास तो
कुछ हमारे पास है
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
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1 टिप्पणी:
Bahut accha likha hai.
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