ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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शनिवार, 27 नवंबर 2010

अधूरी सी ..................
विक्षिप्त सी सीमा रेखा,
विलोम सभ्यता की प्रतीक
सी लगती है ।
ऊंची नीची पहाड़ियों पर,
आदमी और आदमखोरों की
लुका छुपी में
जर्जरता से बेफिक्र,
त्रासदी की बर्बरता अधूरी लगती है ।
दूसरों की पीड़ा वो,
क्यों कर सहें जब ,
स्वंय ही पीड़ित दिखते हों,
ऐसे आशातीतों की
हर बात अधूरी लगती है।
रंज से भीगे रुमालों से
जब मुंह वो पौंछा करते हैं ,
खुद इसकी खबर इन्हें नहीं
एक बूंद खून की गिरने पर
चहुं ओर तबाही मचती है ।
कटाक्ष नजरों के घेरे से,
जब अंगारों की धुंधकार निकलती है,
वहीं दबी -2 सी चिनगारी
जवालामुखी सी लगती है ।

रविवार, 12 सितंबर 2010

हरी पीली पत्तियां

देखी हैं डालियों पर झूमती हुईं पत्तियां
कहीं हल्की तो कहीं गहरी होती पत्तियां
पीले जर्द़ पत्तों की डाह सहतीं पत्तियां
मगर पीले पत्तों का बेजुबान दुख
हवा से थर्रायी, थकीं, ज़मीन ढकती पत्तियां
उम्र के आखिरी पड़ाव से जूझती
कसमसाती पीली पत्तियां
पेड़ से गिरीं, अपने ही आशियाने की
तुलसी बनीं पत्तियां
हरी पत्तियों में शामिल होने को बेचैन
राह तकतीं पत्तियां
कुछ राहगुज़रों के पैरों रौंदी
आप-बीती दोहराती पत्तियां
कहने को दोनों ही बेजुबान मगर
शारीरिक भाषा में अपनी पीड़ा बताती
और बताती मस्तियां
डाल से जुड़ने से हर्षयुक्त
आन्दोलित हरी पत्तियां
वहीं अतीत की यादों से जर्द पीली पत्तियां
घर में कूड़ा लगतीं, बुहारी जातीं पीली पत्तियां
लेकिन मृदा में दबी खाद में तब्दील उत्सर्गी पत्तियां
खुदा हमें डाल से वहीं गिराना
जहां हम भी बन जाएं उत्सर्गी पत्तियां

रविवार, 22 अगस्त 2010

सावन का महीना


आज वो दरिया ही बेईमानी कर गया
ज़ज़्बातों का पानी जिसमें बहता था
भिगोने के लिए जिसे एक चुल्लू न मिला
साथी चला गया और सावन का महीना था


दुनिया-----
सर पर आस्मां रहे न रहे
पैरों तले ज़मीं की जरूरत नहीं हमें
हम तो उस दुनिया में चले गए हैं
अब सांस रहे न रहे इसका ग़म नहीं हमें

रविवार, 15 अगस्त 2010

तिरंगे की लाज

Myspace Indian Flag Graphics Independencec Day Clipart




नाज़ करें हम तुम पर जितना
ओ देश के नौजवान
तिरंगे की आन हो तुम
तिरंगे की जान हो तुम
कलाई का एक चीर तुम्हारे हाथ है
बहन का वो प्यार सदा तुम्हारे साथ है
इस चीर की लाज बचाना है
धर वापस जीतकर तुम्हें आना है
हर मां बहन की आंख में यही एक आस है
मेरे प्यारे नौजवान जीत या कफन तुमहारे साथ है
मॉं की दुआएं बेकार न हो
जिस जमीन के जर्रे जर्रे को
शहीदों ने खून से सींचा हो
उस पर दुश्मन का अधिकार न हो
जय हिन्द जय भारत
भारत देश के स्वतंत्र देशवासियों को मेरा नमन !

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010


प्रियतम

मधु रंजित अधरों पर प्रियतम
आया नाम तुम्हारा प्रियतम
प्रतिबिम्बित नयनों के दर्पण
तुमको किया हमने मन अर्पण
बिन दुल्हन के सूनी देहली
प्रियतम बिना न आए नवेली
कुम कुम बरसा आयी शाम
जिन्दग़ी कर दी तुम्हारे नाम
मन में ऐसे बसे चितचोर
कर गए हमको भाव विभोर
क्षण-क्षण आया ऐसा आलम
होठों से निकला प्रियतम! प्रियतम!

वैलेन्टाइन दिवस पर मेरी सभी को शुभकामनाएँ


शनिवार, 23 जनवरी 2010

धोबीघाट



















वो मेरा घर और
घर के पीछे का धोबीघाट
श श श से कपड़े पछीटते
धोबियों की सीटियों की आवाज़
सर्दी, गर्मी, बारिश में
अधोतन पानी में उतर
पत्थरों पर करते पछाट पछाट
वो धूप से झुलसी चमड़ी
पानी में पड़ी पड़ी धारीदार
कपड़े हैं इनमें संरक्षकों
के समाज सेवियों के,कार्यकरताओं के
कुछ घूसखोर कर्मचारियों के
किसी नेता के, किसी के चमचों के
इनसे निकलता सतरंगी पानी
अलग-अलग धब्बों की कहानी
किसी कपड़े से खून का धब्बा
घूस की चाश्नी का धब्बा तो
चमचागिरी की चाय का धब्बा
लालफीते की स्याही का धब्बा
सस्पेन्डेड अफसरों के पीलेपन का
मंत्रियों की टोपियों के ढीलेपन का
हुआ दाग दगीला इससे निर्मल पानी
गंदलाते नाले, पोखरों की कहानी
गंदे पानी के गड्ढों में फिर कोई
चुनाव की गाड़ी कुदाएगा
कपड़ों पर छींटें उड़ाएगा
फिर सफेदपोशों को दागी बनाएगा
और बेचारा घाट पछाट पछाट की
आवाज़ों से बस गुंजायमान होता जाएगा