कतरा-कतरा जुड़्ता जाता
रक़्त का बनता दरिया
बूंद-बूंद आंखों में जुड़्ती
बनती अंसुअन धारा
कण-कण से मिट्टी बनी
मिट्टी के गिरे मकान
गार गलाई पानी ने
तड़्प-तड़्प मरा इन्सान
इस जोड़-तोड़ की परिभाषा से
बस ईश्वर बना महान
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मखमल में लिपटे कुछ लम्हे मिले हैं, कहते हैं दर्दे-दिल से दूर हैं। नज़र में बारीकियां कुछ हमने भी सीखी जहां, रूमाल उनके कुछ भीगे मिले हैं ।
3 टिप्पणियां:
bahut khoob....
किंचित सम्पूर्णता ईश्वर को भुला देती है ..केवल टूट कर बिखरने वाले ही उसे दिल से याद करते हैं
भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई
एक दर्शन है इस सोच के पीछॆ-बहुत बढ़िया.
एक टिप्पणी भेजें