शुक्रवार, 31 जुलाई 2009
मंज़िल
आंखों में जलते दीप लिए
हर मंजिल पर तुम्हारा साथ चाहिए
कुछ प्यार का अहसास चाहिए
रहें गर दो पल मेहरबां
तो हर जन्म का साथ चाहिए
तब चाहे रास्ते पर कांटे मिलें
या खुशियों भरी रातें मिलें
प्यार हमारा सच्चा हो बस
इतना सा इम्तहां चाहिए
सोमवार, 20 जुलाई 2009
खामोशी
हर चीज बयां ये करती हैं
कुछ बात अनोखी लगती है
चुप सी इन झील सी आंखों में
तिर आयी नमी क्यों लगती है
तब दिल उदास हो जाता है
जब उनकी याद सताती है
लम्बी ठण्डी सी इन रातों में
लबों पे खामोशी छा जाती है
रुक रुक के सांस यूं चलती है
तस्वीर देखकर ख्वाबों में
परछाई गवाही देती है
हर चीज बयां ये करती है
कुछ बात अनोखी लगती है
चुप सी इन झील सी आंखों में
तिर आयी नमी क्यों लगती है
तब दिल उदास हो जाता है
जब उनकी याद सताती है
लम्बी ठण्डी सी इन रातों में
लबों पे खामोशी छा जाती है
रुक रुक के सांस यूं चलती है
तस्वीर देखकर ख्वाबों में
परछाई गवाही देती है
हर चीज बयां ये करती है
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
हालात
आज हर आदमी रोटी को
मोहताज़ बना कुछ ढूंढ रहा है
उसकी वो मिठास जो कहीं पर
खो गई है शायद,काश मिल जाए
हर किसी की रोटी से तोड़ता है
एक कौर कि कहीं इसमें तो नहीं
आज समय कुछ ऐसा है जब
कड़ी मेहनत से पसीना बहाकर
आज के कोलाहल की प्यास वो
रिश्तों की बली से बुझा रहा है
माहौल कुछ बन गया ऐसा कि
गुज़र बसर की जगह के लिए
लाशों को किनारे लगा रहा है
अपनी भूख प्यास मिटाने के लिए
देखो आदमी आदमी को खा रहा है
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
बदले न ...............
बरखा की रुनझुन में
नाचे बावरा मोरा मन
बादलों से आंख मिचौली
करती सुनहरी किरण
तन पर पड़-पड़ चमकाए
निखर उठे यौवन का हर रंग
नाचें गाएं मोर पपीहे
हम भूले जीवन का रूदन
भौंरें मंडराये पुष्पों पर
होए परितृप्त मन की बुझन
पुलकित हो उठे बयार जब
पहली बरखा से भीगे आंगन
कितनी ही ऋतुएं बदले पर
बदले न सजनी का साजन
नाचे बावरा मोरा मन
बादलों से आंख मिचौली
करती सुनहरी किरण
तन पर पड़-पड़ चमकाए
निखर उठे यौवन का हर रंग
नाचें गाएं मोर पपीहे
हम भूले जीवन का रूदन
भौंरें मंडराये पुष्पों पर
होए परितृप्त मन की बुझन
पुलकित हो उठे बयार जब
पहली बरखा से भीगे आंगन
कितनी ही ऋतुएं बदले पर
बदले न सजनी का साजन
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