ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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बुधवार, 21 जनवरी 2009

इन्तज़ाम

हर पल तेरी याद का संजो कर रखा है

सूखा फूल गुलाब का किताब में रखा है

निराधार ज़माने में कुछ आधार रखा है

पत्थरों भरी ज़मीं में कोइ भगवान रखा है

महफिलों में जामों का आतिशांदाज रखा है

पीने वालों ने जिसका गंगाजल नाम रखा है

सुरमई शामों में तेरी यादों का हिस्सा रखा है

मुलाकात के वास्ते कोना कोई खाली रखा है

मिलें फिर जुदा हों ऐसे मिलन में क्याभारती

अगले जन्म में मिलन का इन्तजाम रखा है

सोमवार, 5 जनवरी 2009

मानव

राजस्थान पत्रिका 31 अक्टूबर 2005 में प्रकाशित
दुनिया की दह्ललीज़ पर
नागफनी सी अभिलाषाएं
लोक लाज के भय से
डरी प्रेम अग्नि की ज्वालाएं
सुवासित हु‌ए उपवन फिर
खुल गयी प्रकृति की आबन्धनाएं
उग्र अराजकता से दुनिया की
क्रन्दन करती आज दिशा‌एं
पांव ठ्हर ग‌ए पथ भूल
अन्तर्मन में, नया कोई नया स्तम्भ बनाएं
युगों-युगों तक गूंजें नभ में
पिछली भूलें फिर न दोहराएं
भरी गोद चट्टानों से धरती की
या पत्थर की प्रतिमाएं
भावों की संचरित कविता से
सुप्त जीवन का तार झंकृत कर
चलो, हम मानव को मानव बना‌एं