ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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शनिवार, 13 सितंबर 2008

ये हैं मेरे पापा ..........

क्षणिक प्यार नहीं ममता का
स्नेह सागर है यह पिता का
राहगीर हुए बहुत, दिग्दर्शक नहीं उनसा
मैं बेल उनकी,बरगद सा रूप उनका
कितने पाठ पढ़े जीवन में पर
उनसे सीखा हमनें पाठ मानवता का
शिक्षक,पिता,नागरिक बनकर
पाठ पढ़ाया कर्तव्यों-अधिकारों का
अपने हिस्से कर्तव्यों को रखकर
सदा ध्यान दिया,पर अधिकारों का
अनदेखी समयान्तकाल की उनकी
किया संतानों से व्यवहार मित्र का
जब जब पालन करती उनके संस्कारों का
तस्वीर से बढ़्ता ओज उनके मुखारबिन्द का

1 टिप्पणी:

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

क्षणिक प्यार नहीं ममता का
स्नेह सागर है यह पिता का
राहगीर हुए बहुत, दिग्दर्शक नहीं उनसा
मैं बेल उनकी,बरगद सा रूप उनका
कितने पाठ पढ़े जीवन में पर
उनसे सीखा हमनें पाठ मानवता का

बहुत ख़ूब....अच्छी रचना है...बधाई...