शनिवार, 30 अगस्त 2008
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
कर्ज़दार
रोम रोम रिश्तों का कर्ज़दार
हर रिश्ता कुछ उम्मीद रखता है
हम भी कर्ज़दार हैं खुदा के
जो हर रिश्ते में दर्द रखता है
कटी पतंग
कटी पतंग बन जाएं इससे पेश्तर
हाथों की डोर मज़बूत कीजिए
पेच बहुत लड़ाने होगें जिन्दगी में
लड़ाने से पहले पतंगबाज़ देखिए
ज़िगर
बहुत मन्नतें बहुत हवन किए हमने
ज़माने ने सब चकनाचूर कर दिए
उनसे कहो जिगर हमारा भी हौसलेमन्द था
हाथ हवन में जलाने से पहले हवनकुन्ड उठा लिए
तकदीर
एक कलम खुदा की , एक अपनी चली
खुदा ने तकदीर और हमने रचना लिखी
रचना में तो कांट छांट सम्पादक कर देगा
तकदीर को क्या खुदा दोबारा लिखेगा?
जुस्तजुं
जुस्तजुं जिन्दगी में जरूरी है
उड़ाने उमंगों भरी भी जरूरी है
गर जुस्तजुं पूरी न हो तो,
जीने के लिए तू नई जुस्तजुं बना ले
कांटे
रेशमी कपड़े पहन पास जाता नहीं
फूल चुनने का शौक सभी को होगा
कांटों से मोहब्बत कोई जताता नहीं
सोमवार, 25 अगस्त 2008
अक्सर इन्सान गिरगिट ..........
अक्सर इन्सान गिरगिट बन जाते हैं
मतलब के लिए रंग अपना दिखाते हैं
मौज़ों को साहिल से जोड़कर फिर
भँवर में फँसने का इल्ज़ाम लगाते हैं।
ग़मज़दाओं को ग़महीन बनाने के लिए
कुरेद कर ज़्ख़्म उनके हरे कर जाते हैं ।
कुर्सी के लिए चूसकर रक्त का क़तरा-क़तरा
मरणोपरान्त मूर्तियाँ चौराहों पर लगाते हैं।
रखते हैं गिद्ध दृष्टि दूसरों की बहू-बेटियों पर
अपनी बेटी को देखने वालों के चश्में लगाते हैं।
मुद्दतों से ख़तो-क़िताबत करने वाले
गुनाह करके कैसे अंजान बन जाते हैं।
शुक्रवार, 15 अगस्त 2008
ज़रुरत है हमें
कल के सूरज की ज़रूरत है हमें
हर रिशते के खौफ़ से बेखौफ़ सोए हैं
एक पहर की नींद की ज़रूरत है हमें
दर्द के बढ़ने से खुद बेदर्दी हो गए
हरज़ाई के कत्ल की ज़रूरत है हमें
ज़िन्दा लोग कफ़न में ज़माने के सोए हैं
बस मुर्दों को बदलने की ज़रूरत है हमें
अनजाने सफ़र पर अपने निकल गए हैं
इसकी सफ़ल साधना की ज़रूरत है हमें