अक्सर इन्सान गिरगिट बन जाते हैं
मतलब के लिए रंग अपना दिखाते हैं
मौज़ों को साहिल से जोड़कर फिर
भँवर में फँसने का इल्ज़ाम लगाते हैं।
ग़मज़दाओं को ग़महीन बनाने के लिए
कुरेद कर ज़्ख़्म उनके हरे कर जाते हैं ।
कुर्सी के लिए चूसकर रक्त का क़तरा-क़तरा
मरणोपरान्त मूर्तियाँ चौराहों पर लगाते हैं।
रखते हैं गिद्ध दृष्टि दूसरों की बहू-बेटियों पर
अपनी बेटी को देखने वालों के चश्में लगाते हैं।
मुद्दतों से ख़तो-क़िताबत करने वाले
गुनाह करके कैसे अंजान बन जाते हैं।
6 टिप्पणियां:
कुर्सी के लिए चूसकर रक्त का क़तरा-क़तरा मरणोपरान्त मूर्तियाँ चौराहों पर लगाते हैं।
rajneeti par bada hi khoobsoorat kataksha kiya hai aap ne.
rachana sundar hai ,likhte rahiye.
vishalvermaa.blogspot.com
accha likha hai aap ne ..
swagat sundar rachna
बहुत ही अच्छी रचना.
अपनी बेटी को देखने वालों के चश्मे लगाते हैं
मुद्दतों से खतोकिताबत करने वाले
गुनाह करके कैसे अन्जान बन जाते हैं
कभी मिला खुदा से तो मैं भी पूछूँगा दीदी
उसके होते हुए कैसे ये इंसान बन जाते हैं
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