कुछ गमगीन सी रातें
खामोशी के आलम
में लिपटीं पड़ी थी
कुछ खुशनुमा ख्वाबों के
टुकड़ों में उलझी अधूरी
सी नज्में पड़ी थीं
हर मिसरे पर हिचकी
आती थी, सुबकियां जैसे
कंठ में दबी पड़ी थीं
इन रतजगों से अब
धबरा गए थे हम
सोना बहुत चाहा मगर
आंखें खुली पड़ी थीं
कुछ राज अब तन्हाइयों के
हमसाये थे, ये तनहाइयां ही
तो हमसफर बनीं थीं
ये एक गजबनाक हादसा था
शायद कि किस्मत लिखते वक्त
खुदा से कलम जबीं पर हमारी टूटी थी
अंजाम को अब क्या सोचें जिसकी
इब्तिदा ही, साहिल
से मुंह फेरे खड़ी थी
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5 टिप्पणियां:
tanhai ki baat alag hai jo baat kisi ki sunti hai.
rachna bahoot sunder hai.
tanhai ki baat alag hai jo baat kisi ki sunti hai.
rachna bahoot sunder hai.
भारती जी,
सोना बहुत चाहा मगर
आंखें खुली पड़ी थीं
कुछ राज अब तन्हाइयों के
हमसाये थे, ये तनहाइयां ही
तो हमसफर बनीं थीं
बहुत खूब। वाह।। हयात ज कहते हैं-
तन्हाइयों से दिल्लगी अपने मकान में।
हम हो गए हैं अजनबी पने मकान में।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
कुछ गमगीन सी रातें
खामोशी के आलम
में लिपटीं पड़ी थी
कुछ खुशनुमा ख्वाबों के
टुकड़ों में उलझी अधूरी
सी नज्में पड़ी थीं
बेहतरीन ...
आपके सभी लेख एक से बढ़कर एक है....
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