ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

हद से पहले

उलट गया नकाब तेरा तकदीर से
सामना होगया अपनी ही तस्वीर से
अब पशेमान कयूं हैं नजर तेरी उठते उठते
कद्र की है जिन्दगी की तो सांस रुकते रुकते
अंजाम सोचना था कजा की हद से पहले
अब आ ही गई है तो आगोश में ले ले

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

rachnaji,
achha likha hai aapney

अब पशेमान कयूं हैं नजर तेरी उठते उठते
कद्र की है जिन्दगी की तो सांस रुकते रुकते

maine bhi ek gazal apney blog par likhi hai aap jaroor dekhein.

http://www.ashokvichar.blogspot.com

वीनस केसरी ने कहा…

एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
गजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com


वीनस केसरी

manvinder bhimber ने कहा…

उलट गया नकाब तेरा तकदीर से
सामना होगया अपनी ही तस्वीर से
अब पशेमान कयूं हैं नजर तेरी उठते उठते
bahut sunder Rachana ji