ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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रविवार, 26 अक्तूबर 2008

भवसागर

धूमकर फिर उसी
मुकाम पर पहुंचे
रहते थे जहां हम और
हमारी तन्हाइयों के धेरे
सामने था समन्दर कहां जाते
उसी पर कुछ देर आ ठहरे
लहरों पे हिचकौले खाते
चलकर मौजों में उतरे गहरे
जहान के बनाए दायरों को
तोड़ सुकून फिर चेहरे पे उभरे
कलकल की आवाजें थीं
और लहरों के थे थपेड़े
हर प्रश्ननचिन्ह के जवाब में
मिले हम अकेले
ये सागर नहीं भवसागर था
जिसमें ये कवि सारे
कागज़ की कश्ती में
किनारे को ढूंढ्ने निकले
सागर होता तब भी तर जाते
ये तो भवसागर था
डूबते नहीं तो कहां जाते

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया!!

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.