मन के विश्वास को जमाना है
तन के आभास को आजमाना है
करतूतों और कारनामों का
वहां हिसाब सबको चुकाना है
स्वयं के चक्षुओं को खोलना है
हृदय को अपने टटोलना है
बहुत नहीं तो कुछ ही सही
इन्सानियत का भान कराना है
क्षणिक विजय से न हो भ्रमित
विजय वही है जब मन हो गर्वित
तमाम कुठाराधातों को सहना और
कुचक्रों को पहचानना है
कुटिल व्यक्तियों के जमाने में
मनस्वियों का भी जमाना है
ढूंढो इन कोयले की खानों में
आखिर हीरों से ही जमाना है
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9 टिप्पणियां:
कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया
कम और सहज शब्द गहरी अभिव्यक्ति
मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
बहुत सही कहा...
realistic poem.
wah...
बहुत सुन्दर कविता
बधाई
bahut hi badhiya rachna
... प्रभावशाली रचना।
bahut khub kaha hai aapne. kabhi waqt mile to mere blog par bhi aayen.
www.salaamzindadili.blogspot.com
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