ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

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मन के विश्वास को जमाना है
तन के आभास को आजमाना है
करतूतों और कारनामों का
वहां हिसाब सबको चुकाना है
स्वयं के चक्षुओं को खोलना है
हृदय को अपने टटोलना है
बहुत नहीं तो कुछ ही सही
इन्सानियत का भान कराना है
क्षणिक विजय से न हो भ्रमित
विजय वही है जब मन हो गर्वित
तमाम कुठाराधातों को सहना और
कुचक्रों को पहचानना है
कुटिल व्यक्तियों के जमाने में
मनस्वियों का भी जमाना है
ढूंढो इन कोयले की खानों में
आखिर हीरों से ही जमाना है

9 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

कम और सहज शब्द गहरी अभिव्यक्ति
मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सही कहा...

mark rai ने कहा…

realistic poem.

सुनील मंथन शर्मा ने कहा…

wah...

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता
बधाई

mehek ने कहा…

bahut hi badhiya rachna

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली रचना।

Shamikh Faraz ने कहा…

bahut khub kaha hai aapne. kabhi waqt mile to mere blog par bhi aayen.
www.salaamzindadili.blogspot.com