ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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रविवार, 1 मार्च 2009

एक काम

सपनों को अंखियों में छुपा
तुम गीत नया एक लिख लों
भरी दुनिया से खुद को छुपा
सिलवटों को माथे की गिन लो
चिंता चिता न बन जाए
मन पर इतना न बोझ धरों
पड़ जाएं दिलों में दरारें तो
मोहब्बत से उनको भर लो
दर पे खड़ी हो आशा निराशा तो
झट आशा की झोली भर दो
छोटा है जीवन इसे न निष्काम करो
जीवन मे कोई तो अच्छा एक काम करो

8 टिप्‍पणियां:

प्रदीप ने कहा…

छोटा है जीवन इसे न निष्काम करो,
जीवन में कोई तो अच्छा काम करो.... सुंदर विचार... बधाई....

बेनामी ने कहा…

अच्‍छे विचारों वाली रचना।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया.

Himanshu Pandey ने कहा…

आशा का सुन्दर भाव आपकी इस कविता में है । धन्यवाद.

mark rai ने कहा…

सुंदर विचार...

रंजना ने कहा…

सुन्दर भाव है ।

अर्चना ने कहा…

bhari duniya se khud ko chhupa
silawaton ko mathe ki gin lo
---bahut achchhi lagi.

Neeraj Kumar ने कहा…

चिंता चिता न बन जाए
मन पर इतना न बोझ धरों

Soothing lines...