ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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शनिवार, 23 जनवरी 2010

धोबीघाट



















वो मेरा घर और
घर के पीछे का धोबीघाट
श श श से कपड़े पछीटते
धोबियों की सीटियों की आवाज़
सर्दी, गर्मी, बारिश में
अधोतन पानी में उतर
पत्थरों पर करते पछाट पछाट
वो धूप से झुलसी चमड़ी
पानी में पड़ी पड़ी धारीदार
कपड़े हैं इनमें संरक्षकों
के समाज सेवियों के,कार्यकरताओं के
कुछ घूसखोर कर्मचारियों के
किसी नेता के, किसी के चमचों के
इनसे निकलता सतरंगी पानी
अलग-अलग धब्बों की कहानी
किसी कपड़े से खून का धब्बा
घूस की चाश्नी का धब्बा तो
चमचागिरी की चाय का धब्बा
लालफीते की स्याही का धब्बा
सस्पेन्डेड अफसरों के पीलेपन का
मंत्रियों की टोपियों के ढीलेपन का
हुआ दाग दगीला इससे निर्मल पानी
गंदलाते नाले, पोखरों की कहानी
गंदे पानी के गड्ढों में फिर कोई
चुनाव की गाड़ी कुदाएगा
कपड़ों पर छींटें उड़ाएगा
फिर सफेदपोशों को दागी बनाएगा
और बेचारा घाट पछाट पछाट की
आवाज़ों से बस गुंजायमान होता जाएगा

8 टिप्‍पणियां:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

कविता वो जो पैनी नज़र के साथ आम सी बातों को भी खास अभिव्यक्ति के रंग दे दे।
आप को पढ़ा,
लगा कि क्षितिज पर किसी परिचित से तारे को बहुत दिनों बाद देखना कितना सुकूँ देता है !

वाणी गीत ने कहा…

स्याह धब्बो के बनने और धोने की कहानी कहता धोबी घाट आपकी कविता में बहुत खूब उतरा ...!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कोई चुनाव की गाड़ी कुदाएगा
कपड़ों पर छींटें उड़ाएगा
फिर सफेदपोशों को
दागी बनाएगा
और बेचारा घाट
पछाट पछाट की आवाज़ों से बस
गुंजायमान होता जाएगा

बहुत तीखा कटाक्ष किया है.....बहुत खूब

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

उम्दा रचना
बहुत बहुत आभार

एक कविता अर्थहीन ,श्याम – शवेत तथा मौन । ने कहा…

अच्छी कविता है !

M VERMA ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता उस वर्ग के लिये जिसके सहारे वे राज सुख भोग रहे है
बेहतरीन

रजनीश 'साहिल ने कहा…

बहुत सरल व तीखी कविता.
बस एक धोबीघाट में क्या-क्या नहीं समाहित कर दिया आपने।

Seema Bisht ने कहा…

Sach me ek teekha kataaksh hai aur apke visharo ki dhara bahut krantikaari hai