ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

Website templates

फ़ॉलोअर

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

शौक

दान देते देते मैं तो थक गई
वो न ले गए जो मेरे पास था
गूंजती थी, खनक उनके कानों में जो
मेरे दामन में देने को बस प्यार था
वो महलों, दो महलों की बातें करें
दिल की जागीरी का बस मुझे शौक था
ख्वाब होते कैसे, मेरे पूरे भी वो जिनकी
कीमत का बस मुझे अन्दाज था
उधर शौक था, लूटने का उन्हें
हमारे लुटने का भी एक अंदाज था
खत्म होगए सब लब्ज और फलसफे
ढाई अक्षर का बस हमको अहसास था

9 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुंदर रचना . बधाई लिखती रहि.ये ..

Sandeep Chatterjee ने कहा…

Aapko Likhne Par badhai aur bahut dhanyawad mere website par aane ka.

Sandeep Chatterjee
Singapore .

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया. आजकल कम दिखने की वजह??

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत भावपूर्ण शब्दों से सजायी है आपने अपनी रचना...बधाई...

नीरज

Dixant Tiwari (soni) ने कहा…

Pyar ka pahla isq ka dusra aur mohabbat ka teesra akshar aadha hota hai.....
iska ahsaas in panktiyo mai bakhoobi ho raha hai

suparb....

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bahut sunder... kya baat hai!!!

बेनामी ने कहा…

मूल्यवान विचार एवं अभिव्यक्ति ..धन्यवाद ..

manish bharti ने कहा…

khatm ho gaye sare falsafe bas dhai aksher ka ehasas tha apki is kavita ki ye akhri line meri real life se sambandhit he

Amrit Kumar Sharma ने कहा…

aap ka blog dekha kaviton mai chupa marm samja, gahraiyo mai doob kar vastvikta se sakshatkar karwane ki aap ki dakshta ko amrit ka koti-koti salam