ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

निरक्षर मानव

पेड़ के ओखल में
कठ्फोड़्वे का घर था
वन पेड़ों से बेजोड़ था
बीहड़ जंगल, लकड़ियों का खजाना जैसे
जीव जन्तुओं से नहीं इसे
खुदगर्ज़ आदमियों से डर था
वहीं हाथों में कुल्हाड़ी लिए
कुछ लकड़ी चोरों का भी दल था
कठ्फोड़्वे और लोगों को जंगल से
बराबरी का आसरा था
पहली कुल्हाड़ी की ठेस
वृक्ष व कठफोड़वे को एक साथ हिला गई
तब कठफोड़वे की निगाह अपनी प्रहारी
चोंच के प्रहार पर गई
तने को आश्वासित कर वो
उन लोगो पे जा टूटा
अपने आसरे का सिला एक
कठफोड़वे ने ऐसे दिया
अब वृक्ष की हर शाखा भी झूम उठी
तेज पवन के झौंकों से जैसे
निकली ध्वनि, शुक्रिया कह उठी
ये पेड़ एक विद्यालय के प्रांगण में था
लोग जहां के अशिक्षित पर
वृक्ष शिक्षा की तहज़ीब में था
परोपकारिता और शिष्ट्ता का पाठ
एक वृक्ष व कठफोड़वा पढ़ गया
अफसोस इतना ही रहा कि
इन्सानियत का मानव इससे
क्यों निरक्षर रह गया ।

16 टिप्‍पणियां:

Guman singh ने कहा…

High Quality Templates use karo...4 chand lag jayega..any help tell me dear

Unknown ने कहा…

bahut sundar!dhanyvad!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

भारती जी,बहुत ही बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।

परोपकारिता और शिष्ट्ता का पाठ
एक वृक्ष व कठफोड़वा पढ़ गया
अफसोस इतना ही रहा कि
इन्सानियत का मानव इससे
क्यों निरक्षर रह गया ।

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना है.बधाई.

Vivek ने कहा…

तने को आश्वासित कर वो
उन लोगो पे जा टूटा
अपने आसरे का सिला एक
कठफोड़वे ने ऐसे दिया.

(काश हिन्दुस्तान के बशिंदे इतना भी शऊर सीख पाते)

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आज साक्षरो की नही कमी है तो शिक्षितो की, बहुत अच्‍छी कविता
महाशक्ति

anilbigopur ने कहा…

आपकी रचनाए देख कर बहुत अच्छा लगा!

अवनीश ने कहा…

anand aa gaya aapki kavita pathkar

surendra ने कहा…

bahut achchha is kalaa se vanchit hon.

Harshvardhan ने कहा…

gagar me sagar hai yah post
dhanyavad

devi ने कहा…

बहोत ही बढिया च लिख्यौं, जनी आप खुद खूबसूरत छन तनी रचना भी।

karmowala ने कहा…

too good mam
i am feeling your thought is wonderful
please keep it up

vijay kumar sappatti ने कहा…

bahut sundar rachna .. bahut bhaavpoorn.. aur pritibimb se bhari hui...

appko bahut badhai...

vijay
pls visit my blog for new poems: http://poemsofvijay.blogspot.com/

Dhanraj Gaur ने कहा…

HI... I am Dhanraj Gaur... I got your comment on my Blog...

Yes my father is Sohan Gaur who lives in kolaras and I am working in Noida....

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Keep commenting.. Byeee...

अभिषेक आर्जव ने कहा…

ब्लॉग आकर्षक है आपका ! रचनाएँ तो सुंदर हैं ही ......
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद !

Naveen Tyagi ने कहा…

mere blog par aane k liye dhanyawaad.