पांच लोगों का जमघट
तीन पत्ती का खेल
धुआं उगलती मोटरें
हाटों में रेलमपेल
झौंपड़ी में घुस गई
फैशन की चाल
माथा टीकी लाली
गंवारन का हाल
सूखी मटकी खाली
टीन कनस्तर खाली
करने बातें बैठें हैं
कैसे आएगी, गांव में खुशहाली?
तू जीता,मैं जीता
चल अब दस की पत्ती डाल
चाय की थड़ियां और
कट चाय की गुहार
सरकार ने क्या किया
इस कोठे का धान उसमें भरा
खैनी फांकी, चूना झटका
घर से निकली सर पर मटका
हैण्डपंप पर खुसर फुसर
चरी मटकी का साज
गोरियों का इठलाना
खिलखिलाहट का राग
फिकरेबाज़ी छींटाकशी
दनदना गाली निकली
घर अंदर से बुहार लें
कचरा रस्ते पर डाल
कीचड़ से गलियां भरी
और चबूतरे साफ
कैसे आएगी गांव में खुशहाली?
तू जीता, मैं जीता
चल दस की पत्ती डाल
कीचड़ लदे रास्ते
मक्खियों की भनभनाल
माथे पर शिकन नहीं
खटिया नीम तले डाल
दातुन,मंजन,खैनी,गुटखा
चार पहर डाक्टर का नुस्खा
फिल्मों में हीरो को देखा
छोरा बना हीरो सरीखा
सफेद पतलून चमेली का तेल
जिधर देखो तीन पत्ती का खेल
15 टिप्पणियां:
शब्द भाव संयोग से कही आपने बात।
बातें अपनी कह गयीं क्या सच में हालात?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
वाह रचना जी ,
बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी आपने मन आनंद से भर गया
सादर वन्दे!
झौंपड़ी में घुस गई
फैशन की चाल
माथा टीकी लाली
गंवारन का हाल
सूखी मटकी खाली
टीन कनस्तर खाली
करने बातें बैठें हैं
कैसे आएगी, गांव में खुशहाली?
क्या कहें जी, यही है इस देश का आज.
रत्नेश त्रिपाठी
बहुत ही बढ़िया!!
wah.
वाह रचना जी ,
बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी आपने मन आनंद से भर गया
बहुत बढ़िया..
वाह!! बहुत खूब बुना है. आँखों देखा हाल सुनाया है.
बहुत ही अच्छी रचना है।
pls visit
http://dweepanter.blogspot.com
बहुत खूब कहूं.. लाजवाब कहूं.. लेकिन मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं... बेहतरीन तस्वीर पेश की है...
Bharti jee aapki rachnaa padee iss bahut sundar rachnaa ke liye badhaee sweekaren
ashok andrey
आपकी कविता पढ़ कर एक हिंदी पत्रिका
के स्थायी कॉलम -'समस्या पूर्ती' की
याद ताज़ा हो गयी
कुये का पानी,नीम की दातौन,
गाँव का हूँ आदमी सुनता है कौन,
मोटर साइकिल की रेश,चमकता है फ़ेस,
पेट में है पिज्जा वाह मेरे देश,
नल का पानी कीडों का है जाल,
स्वाइन फ़्लू का जोर शहर का है हाल,
डाक्टरों की चपत,सरकार का सवाल,
गांव के धोरों पर नाचते हैं मोर,
शहर के घरोदों में रहने का ना ठौर,
सावन के महिने की हवा पुरवाई,
पंखे से बेहतर है,गांव की रुसबाई,
है करोड रुपया फ़िर भी अकेला,
पंचायत है दस की जेब में ना धेला,
जुर्म की सजा है,कोर्ट के हैं चक्कर,
गांव की पंचायत की नही कोई टक्कर,
गल्ला को पैदा कर भरते हैं पेट,
जाते है शहर में तो बढ जाते है रेट,
एक दूसरे को काटना चालाकी का काम,
इज्जत को बटोरने में लगते है दाम,
मैयत की खबर भी छपती है अखबार में,
सारी उम्र धन को कमाया बेकार में,
rachna ji
behtarin rachna ke liye
bahut bahut abhar
नागार्जुन याद आ गए।
ऐब्सर्डिटी का रोजनामचा।
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