निग़ाह दौड़ते-दौड़ते थक गई
कहीं बंज़र ज़मीन पर रूक गई
ये तो वही जगह है जहां
अ़मराईयां हुआ करती थी कभी
खिंज़ा की ज़्यादतियां देखिए
साथ आंख़ों के ज़मीन भी पथरा गई
कहां गए वो नरम घास के बिछौने
ख़ेला करते थे ख़रग़ोश जिन पर
डालों पे थे चिड़ियों के घोंस़ले
चांद चक़ोरों की लुकाछिपी
सभी आंख़ों से ओझल हो गई
देख़ते ही देख़ते ज़मीन बंज़र हो गई
इसका ज़र्रा-ज़र्रा पुकार रहा
आस्मां तो बादलों से आ घिरा
रोक लो इन्हें, मुझपे ये अहसान रहा ।
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
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15 टिप्पणियां:
बंजर जमीन की पुकार ......बहुत काबिले तारीफ़ लिखा है ...सचमुच बादल को बरसना ही होगा ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत अच्छा लिखा है आपने ...बंजर जमीन की चाह
सुंदर रचना। अंतरमन से निकले शब्द।
वाह... भई वाह... कविता अच्छी है... आप बधाई स्वीकारें... और हां.. आपने पत्रिका का अंक नहीं भेजा..
आपकी कविताअओं में अपनत्व का एहसास हुआ,बेह्तरीन कविताएं, बधाई स्वीकारें...।
अच्छी कविताएँ हैं!
---
गुलाबी कोंपलें । चाँद, बादल और शाम
बहुत सुंदर रचना है, ख़ासकर ये पंक्तियां बुत अच्छी लगीं -
खिज़ां की ज़्यादतियां देखिए
साथ आंखों के ज़मीन भी पथरा गई।
महावीर शर्मा
खिज़ां की ज़्यादतियां देखिए
साथ आंखों के ज़मीन भी पथरा गई।
....bahut sunder panktiyan
ittifaq se aapke blog par aana huaa
sundar ati sundar
har rachna prakriti or insaniyat ke kariib acche sabdoN ka sundar priyog rachna ki khoobsurati mein jaise char chaNd laga raha ho
ek chintak or vicharak ki tarah har rachna ek sandesh ek roshni bikheri ho jaise
yakinan kabil-e-tariiff
padh ke nirash nahii hona padaa
खिज़ां की ज़्यादतियां देखिए...
bahut sundar panktiya he..
mujhe to poori kavita ka yahi sabse behtar pahlu laga..aap achcha likhti he..
अच्छी कविताएँ हैं!
बधाई स्वीकारें...।
खिज़ां की ज़्यादतियां देखिए
साथ आंखों के ज़मीन भी पथरा गई।
....काबिले तारीफ़ लिखा है. बधाई स्वीकारें।
aapne bahut hi achhaa mudda par likha hai dhanyavaad
आदरणीया रचना जी सादर नमस्कार.
मैं एक नया ब्लाॅगर हूँ. महज ब्लाॅगर के रूप में मेरी जन्म हुए 20-22 दिन ही हुए हैं. ब्लाॅग का मुझे अभी अल्प ज्ञान है. मैं अभी रात-रात भर जग सिखने की प्रक्रिया में लगा हुआ हूँ. तकनीकी भाषा भी अभी कम ही समझ मंे आती है, जिसके चलते बहुत कुछ नहीं कर पाता हूँ. उमीद है, सिख जाऊँगा एक दिन पूरी तरह. खैर ! 27 अप्रैल को मेरे ब्लाॅग पर आप का एक संदेश (टिप्पणी) आया था, आपने अपने ब्लाॅग पर मुझे स्वागत कर निमंत्रण दिया था, आपका बहुत-बहुत दिल से साधुवाद! उस वक्त मुझे जवाब भेजने और पोस्ट करने भी नहीं आता था. और समझ में भी नहीं आता था. आज आपकी सारी रचनाएँ पढ़ने की कोशिश की कामयाब भी रहा. आपकी रचना-भ्रम, प्यासी धरती, धूप, इंसा, फिर चुनाव आया. होली हुड़दंग. दस्तक, खोज, यादें, शौक, प्रेमाग्नि, दिल एक कब्रगाह, दर्द की लहर, एक किरण आदि आदि सारी रचनाओं अवलोकन किया. आपकी सभी रचनाओं में मानवीय संवेदानाएँ ही सामने मुखर हुई है. अलग-अलग रूपों में. संवेदना ही हमें बाँध कर रखती है, जिसकी कारण सारी संताप, और पीड़ाओं से लड़-झगर कर हम पुनः इकटठ्े रहते हैं. सारे दर्द और लहर हम एक दूसरे को देख कर भूल जाते हैं. सारी शिकवा और शिकायत समय के साथ हम भूल जाते हैं. बेशक आपकी की रचना भावना प्रधान होने के साथ-साथ आप ही ही तरह खुबसूरत भी है. इसी के साथ समाप्त करता हूँ- आपकी ही पंक्तियाँ आपके ही नाम- शबनम कहती है, जिन्दगी हँसी है बड़ी है. नजरिया बदल के देखो खुबसूरती कायनात में रहती है. क्या खूब है. धन्यवाद ! बधाई !
मेरी शुभ कामनाएँ हैं आपके ब्लाॅग को. आपके ब्लाग और आपकी रचना संसार और तरक्की करें और तरक्की की राह पर अग्रसर रहे.
अरुण कुमार झा (मेरा एक बेव साईट है www.drishtipat.com तथा एक ब्लॅlग www.drishtipatpatrika.blogspot.com
एक बार उसे अवश्य देखें. अनजाने और अल्प ज्ञान के कारण उसे मैंने कबाड़ बना डा ला है.)
आदरणीया रचना जी सादर नमस्कार.
मैं एक नया ब्लाॅगर हूँ. महज ब्लाॅगर के रूप में मेरी जन्म हुए 20-22 दिन ही हुए हैं. ब्लाॅग का मुझे अभी अल्प ज्ञान है. मैं अभी रात-रात भर जग सिखने की प्रक्रिया में लगा हुआ हूँ. तकनीकी भाषा भी अभी कम ही समझ मंे आती है, जिसके चलते बहुत कुछ नहीं कर पाता हूँ. उमीद है, सिख जाऊँगा एक दिन पूरी तरह. खैर ! 27 अप्रैल को मेरे ब्लाॅग पर आप का एक संदेश (टिप्पणी) आया था, आपने अपने ब्लाॅग पर मुझे स्वागत कर निमंत्रण दिया था, आपका बहुत-बहुत दिल से साधुवाद! उस वक्त मुझे जवाब भेजने और पोस्ट करने भी नहीं आता था. और समझ में भी नहीं आता था. आज आपकी सारी रचनाएँ पढ़ने की कोशिश की कामयाब भी रहा. आपकी रचना-भ्रम, प्यासी धरती, धूप, इंसा, फिर चुनाव आया. होली हुड़दंग. दस्तक, खोज, यादें, शौक, प्रेमाग्नि, दिल एक कब्रगाह, दर्द की लहर, एक किरण आदि आदि सारी रचनाओं अवलोकन किया. आपकी सभी रचनाओं में मानवीय संवेदानाएँ ही सामने मुखर हुई है. अलग-अलग रूपों में. संवेदना ही हमें बाँध कर रखती है, जिसकी कारण सारी संताप, और पीड़ाओं से लड़-झगर कर हम पुनः इकटठ्े रहते हैं. सारे दर्द और लहर हम एक दूसरे को देख कर भूल जाते हैं. सारी शिकवा और शिकायत समय के साथ हम भूल जाते हैं. बेशक आपकी की रचना भावना प्रधान होने के साथ-साथ आप ही ही तरह खुबसूरत भी है. इसी के साथ समाप्त करता हूँ- आपकी ही पंक्तियाँ आपके ही नाम- शबनम कहती है, जिन्दगी हँसी है बड़ी है. नजरिया बदल के देखो खुबसूरती कायनात में रहती है. क्या खूब है. धन्यवाद ! बधाई !
मेरी शुभ कामनाएँ हैं आपके ब्लाॅग को. आपके ब्लाग और आपकी रचना संसार और तरक्की करें और तरक्की की राह पर अग्रसर रहे.
अरुण कुमार झा (मेरा एक बेव साईट है www.drishtipat.com तथा एक ब्लॅlग www.drishtipatpatrika.blogspot.com
एक बार उसे अवश्य देखें. अनजाने और अल्प ज्ञान के कारण उसे मैंने कबाड़ बना डा ला है.)
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