हर पल तेरी याद का संजो कर रखा है
सूखा फूल गुलाब का किताब में रखा है
निराधार ज़माने में कुछ आधार रखा है
पत्थरों भरी ज़मीं में कोइ भगवान रखा है
महफिलों में जामों का आतिशांदाज रखा है
पीने वालों ने जिसका गंगाजल नाम रखा है
सुरमई शामों में तेरी यादों का हिस्सा रखा है
मुलाकात के वास्ते कोना कोई खाली रखा है
मिलें फिर जुदा हों ऐसे मिलन में क्या ’भारती’
अगले जन्म में मिलन का इन्तजाम रखा है
10 टिप्पणियां:
मिलें फिर जुदा हों ऐसे मिलन में क्या ’भारती’
अगले जन्म में मिलन का इन्तजाम रखा है
क्या खूब लिखा है !
बहुत सुन्दर.
आपकी कवितायें बहुत गहरी हैं| बहुत ही अच्छा लिखा हैं|
हम भारत-(कानपूर, मथुरा, वृन्दावन, एवं भोपाल इत्यादि ) की यात्रा पर थे, अत: इस लेख के दूसरे भाग को लिखने में देरी हो गयी | प्रस्तुत है इस लेख का दूसरा भाग | सविनय धन्यवाद |
baadal.wordpress.com
bahut hi achchha likha hai aap ne. is janm men n sahi to us janm men ham jise chahte hai jarur milenge
आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग के प्रथम प्रयास को सराहा. अभी लिखने को बहुत कुछ है बस थोड़ा समय मिलते ही पहले ब्लॉग से अभिक्ष होना चाहूँगा और उसके पश्च्यात कोशिश करूँगा की नियमित तौर पर थोड़ा वक्त ब्लॉग को दे सकू. एक बार फिर आपका हौसला अफजाही के लिए शुक्रिया.
KABITA LIKHNA BEHAD KATHIN HAI...PAR PADHNA BAHUT AANANDDAYAK RAHTA HAI..SUKRIA...AISE HI LIKHTI RAHIYE..
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
कविता में तो चलता है अच्छा लिखा है ... पर आजकल यथार्थ ये है की मिलन से पहले जुदाई क्यों और मिलन के लिए अगले जन्म का इन्जेज़ार क्यों .
इंतजार भी दोस्तों क्या खेल खिलाता है
हर अंजान चेहरे मे भी अपना सा कोई नज़र आता है।
क्या करें इस भीड़ मे भी खोकर हम
रिश्तों का पैमाना हमें वापस एंकात मे खींच लाता है।
कविताओ मे कहने वाली हर बात अहसास के साथ जुड़ी होती है। इसी अहसास को आपने बरकरार रखा है। अच्छा लगा।
रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
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