कच्ची मिट्टी का घड़ा हो तुम
मैं हूं तुम्हारी सुराही
भीनी सी खुश्बू तुम में थी
सुगंधित जल मैं भर लायी
जीवन का लहू जमा हुआ सा
चलो मिलकर इसे पिघलाएं
एक कुम्हार (परमात्मा), एक ही मिट्टी,
तुम रहे तने, मुझे झुकाया ये कैसी प्रकृति
टूटोगे तुम भी, बिखरूंगीं मैं भी
काम एक ही है प्यास बुझाना
प्यास जो बुझे तो प्यासे, खुदा से दुआ करना
मटके से मेरी गर्दन कभी न लम्बी करना
वरना ये दुनियां पकड़-पकड़ गिराएगी
पानी पीकर खाली सुराही (भोग्यक्ता)
ज़मीन पर लुढ़काएगी
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008
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20 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया बात दिल को छू गयी!
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तखलीक़-ए-नज़र
http://vinayprajapati.wordpress.com
बढ़िया जी बहुत बढ़िया.
bahut sundar baat keh di,badhai.
सुंदर रीति से आपने सुराहे घडा और कुम्हार को अपने भावो में पिरोया है लाज़बाब है
एक निवेदन आपसे आप अपने ब्लॉग का पता www.zandagilive08.blogspot.com न लिखकर http://zandagilive08.blogspot.com लिखा करें यह सही फॉर्मेट है
Rachana ji,
Bahut sundar kavita likhee apne.Apkee is kavita men to hamara poora bharteeya jeevan darshan chhupa hai.Stree-Purush,donon hee is duniya ke do pahiye hain.ek ke bina doosara adhoora hai.sirf itna hee naheen ,agar prateekon kee bat karen to donon Atma -Parmatma ke prateek bhee hain.Aur donon ke sammilan se hee Brahma kee prapti hoti hai...Bahut kam shabdon men ek poore jeevan darshan ko prastut karne ke liye badhai.
Hemant Kumar
सर्वप्रथम धन्यवाद आपकी टिप्पणी हेतु.
मेरे ब्लॉग पे आपके आगमन से मुझे एक फायदा यह हुआ कि आपकी प्रतिभा के किंचित अंशों से साक्षात्कार हो गया। भावों को प्रस्तुत करने की शैली लाजवाब है आपकी।
शुभकामना सहित,
मणि.
अच्छा लगा....
और आज आपका आर्ट वाला ब्लॉग भी देख...
वो भी खूब सजा रखा है गुडिया ने...
दोनों रचनाकारों को बधाई
HI chachi, maine aapko pehchaan liya hai..
aap pehle to TV news channel main thi na?? kya abhi bhi TV news channel main ho ya ab kahin aur job kar rahi ho?
baki sab thik hai..
byee....
sundar rachana
vikram
नववर्ष २००९ की मंगल कामनाओं सहित बहुत बहुत बधाई !
रचना जी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। कविता भी अच्छी है।
bahut hi jiwant chitran.
Bahut hi jiwant chitran.
उम्मीदों-उमंगों के दीप जलते रहें
सपनों के थाल सजते रहें
नव वर्ष की नव ताल पर
खुशियों के कदम थिरकते रहें।
कविता अच्छी है।
नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।
व्यथा और अंर्तद्वन्द का सजीव चित्रण करती कविता के लिये बधाई.
मुकेश कुमार तिवारी
bahut achchi soch hai, likhte raho, good luck.
आपकी रचना अच्छी लगी ,बधाई !
kavita ka bhav paksh jabar-dast hai, badhai !!!!
कविता बहुत सुंदर है . मन को छु कर किसी मुलायम कोने में बहुत कुछ सोचने को मजबूर करतो है . बहुत अच्छे ..
behtreen rahana.
thanks for visiting my blog.
ek prayas hai.
margdarshan apekshit hai.
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