ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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रविवार, 7 अप्रैल 2013

आज ऐपन से लिखूँगी ,मैं अपनी तक़दीर
इसी देश की बेटी हूँ मैं, इसकी ही ज़ागीर 
ज़न्म से पूर्व ,म्रत्यु  से खेली,मैंने आँख मिचौली 
माँ की गोद मुश्किल से मिली,आस्थाओं  की होली 
मुंह छिपाए घर से निकली ,संग में सखी न सहेली 
नयनो में इच्छाओं को भरकर,कामनाओं की होली 
नुक्कड़ जब मिले पुलसिया, तार तार हुई साड़ी 
विश्वास की सुलगती शैया पर, वेदनाओं की होली 
हर बेटी अस्मत  से अपनी, हो रही फ़कीर 
सांप निकलते जा रहे,  अब पीट रहे हैं लकीर 
डर के साये मिटा दिए , हाथों  मे ले कटार
लाल मिर्च है हाथ मैं,आ फागुनी बयार   

2 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

सांप निकलते जा रहे , अब पीटते लकीर !
सच ही !

Ravikant yadav ने कहा…

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