धुल जातें हैं मगर
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
दीवारों की दरारें तो फिर भी
पट जाती हैं मगर
पड़ गई दिल की दरार
को पाटना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
जिस्म के बैर तो फिर भी
मान जाते हैं मगर
रुह के बैर को
मनाना आसान नहीं
तपती दुपहरी में फिर भी
मिलते हैं कुछ अपने मगर
गुजरती शामों के सायों मे
उन्हें भुलाना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
टूटते रिशते नई दिशा में फिर भी
जुड़ जाते हैं मगर
ख्वाहिश की चरमराती यादों में
तुम्हें भुलाना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं