ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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सोमवार, 31 अगस्त 2009

आसान नहीं

दामन में लगे दाग तो फिर भी
धुल जातें हैं मगर
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
दीवारों की दरारें तो फिर भी
पट जाती हैं मगर
पड़ गई दिल की दरार
को पाटना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
जिस्म के बैर तो फिर भी
मान जाते हैं मगर
रुह के बैर को
मनाना आसान नहीं
तपती दुपहरी में फिर भी
मिलते हैं कुछ अपने मगर
गुजरती शामों के सायों मे
उन्हें भुलाना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
टूटते रिशते नई दिशा में फिर भी
जुड़ जाते हैं मगर
ख्वाहिश की चरमराती यादों में
तुम्हें भुलाना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं

शनिवार, 15 अगस्त 2009

मेरे ब्लोग का प्रथम जन्म दिवस

हमारे देश की आज़ादी की 62 वीं वर्षगांठ पर समस्त ब्लोगर व पाठकों को रचना गौड़ भारती की हार्दिक शुभकामनाएँ। इन स्वतंत्रता प्राप्ति की पावन स्मृतियों के संग मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ भी पूर्ण हुई है । साल भर में आप लोगों का जो स्नेह ,प्रोत्साहन व आशीर्वाद मुझे प्राप्त हुआ उसके लिए तह दिल से मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूं। चाह यही है, आसमान में ऊँची मैं उड़ जाऊँ, आज़ादी के ज़श्न के संग- संग, अपने ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ का ज़श्न मैं मनाऊं ।
इस खुशी की बेला में आप लोगों के लिए एक कविता पेश है ।

स्वाभिमान का पंछी
क्षितिज पाने की चाह में
आकाश की ऊँचाई चढ
बहेलियों से दूर बहुत दूर
आज़ादी का पंछी उड़ान भर रहा है
नापा है आकाश उसने
अपने इन्ही कमज़ोर पंखों से
रोएं-रोएं में जैसे कोई जोश भरा है
टूटते बनते घोसलों की फ़िक्र नहीं
सतत प्रक्रिया और कर्म स्थली से बंधा है
असली नकली की पहचान है उसको
काले दानों से सफ़ेद दाने अलग कर रहा है
न तो आज़ादी में कोई ठग सकता है
न ही मैत्री समझौता हो सकता है
क्योंकि बहेलियों का गुलेल से रिश्ता है
चिंचिंयाहट में प्रेम तराने सुनकर उसके
स्वर लहरियों में आत्मविश्वास बड़ा है
इसी से मेरा देश स्वाभिमान खड़ा है

सोमवार, 10 अगस्त 2009

मुलाकात


कल रात एक अनहोनी हो गई
मेरी मुलाकात मेरे ज़मीर से हो गई
अनगिनत सवाल थे और जवाब मेरेे
जवाब देते देते नज़र मेरी झुक गई
कल रात एक अनहोनी हो गई
तराजू था निगाह में दुनियां के वास्तेे
आज मेरी निगाह ही मुझसे झुक गयी
कल रात एक अनहोनी हो गई
आइ्रने ने गिरा दी गर्त की सारी परतें
चुप्पी होठों की इकरार-ए -खता कर गई
कल रात एक अनहोनी हो गई

बुधवार, 5 अगस्त 2009

सावन की बदली


पिव का हिंडौला मोरे द्वार पर आया रे
मेघों तुम सावन के मोती बन बरसों रे
बरसों के बाद ऐसा मौका है आया रे
पिव का हिंडौला मोरे द्वार पर आया रे
बिखरी घटाओं को ऐसे तुम बांध लो
मस्त फिं़ज़ाओं को झूम के निहार लो
पिव का हिंडौला -----------
पपीहे के पिहुंकने से मन है डोले रे
बरखा की रिमझिम में तन मोरा भीगे रे
खुशनुमां मौसम में पड़ गए हैं झूले रे
कोयल के कूकने से मोर भी है नाचे रे
पिव का हिंडौला ------------