ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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मंगलवार, 2 जून 2009

नया सवेरा

वो पांच पहर की अज़ान

सुबह शाम की आरतियां

उस अधमरी लाश में

कुछ हरकत पैदा करतीं है

अलसाए सूरज की

बुझती किरणों को

एक बार फिर विदा करती है

सड़्क किनारे बैठे भिखारी

अर्धखण्डित मुंडेरों पर कौए

सागर तट तड़पती मछलियां

उसे और अधमरा करतीं हैं

लाल किले का तिरंगा

दलदल में खिला कंवल

लुकछुप नाचता मोर

चीते मिलें चहुं छोर

पीड़ित अधीर आत्मा में

कुछ धीर पैदा करती है

किसकी है विचलित आत्मा

जो प्रतिपल आठों पहर

कराहती सिसकती

सुनने को नया आगाज़

बैचेनी बयां करती है

नहीं हम मरने नहीं देंगे

इस हमारी संस्कृति को

पकड़े सभ्यता की डोर

सांस बांधे सांस को

चलो उठो अब बहुत हुआ

आगे हमारी बारी है

सूरज चढ़ने को हुआ

अभी नया सवेरा बाकी है

9 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

नया सबेरा के लिए अच्छा लगा प्रयास।
रचना की रचना पढ़ी सुन्दर है एहसास।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

समयचक्र ने कहा…

चलो उठो अब बहुत हुआ
आगे हमारी बारी है
सूरज चढ़ने को हुआ
अभी नया सवेरा बाकी है

नए सुबह बाकी है .बहुत ही उम्दा भावुक रचना रचना जी . नए सुबह का अहसास मोहक होता है . अतिसुन्दर .बधाई

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना है ...मुझे बहुत पसंद आई

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

प्रिया ने कहा…

mujhe to ye naya savera bahut raas aaya

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

sunder abhivyakti.

अजय कुमार झा ने कहा…

jitnaa sundar blog hai aapkaa utnee hee prabhaavee rachnaa lagi aapkee...bahut sundar..

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

हर सबे गम की सहर हों ये जरुरी तो नहीं
नींद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती हैं
उसकी आगोश में सिर हों ये जरुरी तो नहीं!
सुंदर अच्छा लगा.

jamos jhalla ने कहा…

Is raajnitik KALYUG mai nai savere ki kalpanaa aaaaaaaaccccchhhhhaaaaa[achaa]hai.
jhallevichar.blogspot.com

Unknown ने कहा…

UMDA
ANUPAM
PYARI KAVITA
badhai!