मन का जब कोई तार उलझकर खुलता है
कमल नयनों से नीर धार में बहता है
कुछ मखमली बिछौने हम भी उधार ले आएं
मेरे आंचल का कोना तो भीगा रहता है
मन की वीणा का जब कोई तार बजता है
रोम-रोम झंकृत कर एक नया ही सुर बनता है
खामोशी,एकांत ने हमें सदा ही लुभाया है
साथ इनके रहकर ही यादों का तांता रहता है
चितचोर बन कोई मन में समाए रहता है
बिन रूप आकृति के मन हम पर हावी रहता है ।
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17 टिप्पणियां:
सुंदर कविता के लिए बधाई।
rachna ji,
shubhkamnao ke liye dhanywad.
thnx,
tarun sharma, ni:shabd...shabdon ke jahan mein.
शब्दों का चयन और भाव...दोनों ही आप की रचना में लाजवाब हैं...बधाई...
नीरज
अद्भुत प्रवाह से सयुंक्त गंभीर भावाभिव्यक्ति से ओतप्रोत रचना समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर दस्तक दे
चितचोर बन कोई मन में समाए रहता है
बिन रूप आकृति के मन हम पर हावी रहता है
अच्छी लगी कविता आपकी. स्वागत आपका मेरे ब्लॉग पर भी.
चितचोर बन कोई मन में समाए रहता है
बिन रूप आकृति के मन हम पर हावी रहता है ।
क्या बात है ,जबरदस्त.आप की रचना मन को छू गई .
चितचोर बन कोई मन में समाए रहता है
बिन रूप आकृति के मन हम पर हावी रहता है ।
क्या बात है ,जबरदस्त.आप की रचना मन को छू गई .
jaane kyaa ye man hase kahataa hai
kya-kya-kya-kya-kya sapne buntaa hai.....
jindgi to apne man ki maalik hai..
jindgi se aksar ye kya-kya chuntaa hai.....
" Haavee man" to bha gayee hee, par aapke mukhprushthpe likha," ...Nazariya badalke dekho..." ye alfaaz behad achhe lage...!
i m impressed
thanks to visit me
i lv to visit u also
dil ko chhu liya aapki nai kavita ne. shubhkamnaye.
badhai rachnaji, mujhe kavitao se jyada prem nahi tha par aapki rachna padhne ke baad laga ki ye meri galti thi..and now i love poem
भावनाओं की अच्छी लडी पिरोई है आपने.
nav varsh ki shubhkamnayai
आपकी कविता अच्छी लगी
आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत
nav varsh ki shubhkamnayai
आपकी कविता अच्छी लगी
आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत
kuchh makhamali khiloune ham bhi udhar le aayen ---
Rachanaji aapki yeh pankti pata nahi kyon mere antasthal ko kuchh jyada hi sparsh kar gayi. Aapne to apni kavitaon me jindagi ka marm bhar diya hai.
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