
आज वो दरिया ही बेईमानी कर गया
ज़ज़्बातों का पानी जिसमें बहता था
भिगोने के लिए जिसे एक चुल्लू न मिला
साथी चला गया और सावन का महीना था
दुनिया-----
सर पर आस्मां रहे न रहे
पैरों तले ज़मीं की जरूरत नहीं हमें
हम तो उस दुनिया में चले गए हैं
अब सांस रहे न रहे इसका ग़म नहीं हमें