ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

Website templates

फ़ॉलोअर

मंगलवार, 9 जून 2009

स्थिर परम्पराएं

आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएं
कुछ ताजिये ठंडा करें
कुछ गणेश प्रतिमाएँ विसराएँ
बारम्बार रीतियों के चक्र में
कुछ नीतियों को खोदें
कुछ को दफनाएं
स्थिर प्रकृति के चलचित्रों से
इनको थोड़ा अलग बनाएं
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
ऊँचे ढकोसलों की ऊहापोह में
इंसान से गिरता इंसान बचाएं
ठकुरसुहाती सुनने वालों को
उनका चरित्र दर्पण दिखलाएं
होगा न रंगभेद डुबकी लगाने से
सागर में थोड़ी नील मिलाएँ
नीले अंबर से सागर का समागम करवाएं
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

bilkul sahi kataakch..bahut umda.

Unknown ने कहा…

achha hai

Arvind Gaurav ने कहा…

bahut achha likha hai aapne

बेनामी ने कहा…

आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
paramparaon par sahi prahar.
सागर में थोड़ी नील मिलाएँ
bilkum adbhut parikalpana hai.
badhai

Poonam Agrawal ने कहा…

Ek hi shabd kahungi....behtreen rachana

Prem Farukhabadi ने कहा…

आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएं
कुछ ताजिये ठंडा करें कुछ गणेश प्रतिमाएँ विसराएँ बारम्बार रीतियों के चक्र में कुछ नीतियों को खोदें कुछ को दफनाएं
स्थिर प्रकृति के चलचित्रों से इनको थोड़ा अलग बनाएं

pragativaadi rachna sarahneey hai. badhaai.

robin ने कहा…

teekha hai aur umdaa hai !!
brilliant !!

Sudesh Bhatt ने कहा…

अति सुंदर मन खुश हो गया आपकी सभी रचनाओं को पढ़ कर आप मेरे पास शब्दों की कमी हो गई है आपकी तारीफ करने के लिए ...धन्यवाद