मानव मूल्य मंजूषा
जीवन जीजिविषा
वृक्षारोपण
वृक्ष-क्षरण
जन्म औ मृत्यु
पेड़ लगा है
पेड़ गिरेगा
मानव जन्मा
मानव मरेगा
वृक्षों का सफर
उपादेयता
जीवनपर्यन्त
पर्यावरण, औषधी
प्राणवायु, संरक्षण
गिरे पेड़ की उपादेय
लकड़ी उसकी
क्या, सीखेगा मानव ?
जो खाली हाथ आया
मगर सीखकर पेड़ों से
खाली हाथ नहीं जाएगा
ले जाएगा उत्सर्ग की उष्मा
जो मरणोपरान्त दे सकता है
अंग, देह के दान से
मसीहा बन
मरकर भी अमर हो
दे जाएगा दुनियां को
जीने का नया संदेश
नई दिशा उत्सर्ग की
बुधवार, 24 जून 2009
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9 टिप्पणियां:
umda kaavya............
abhinav bhasha.........
anupam saundryabodh.........
waah
waah
बहुत बेहतरीन सोच..सुन्दर रचना.
भारती जी आप लिखती बहुत अच्छा है
और आपकी सोच उससे भी अच्छी
आपसे एक प्रार्थना है कि आप जिस पत्रिका
का संपादन करती हैं क्या उसमे हम भी कुछ लिख सकते है,
हमको लिखने का बहुत सौख है.
अभी हमने अपना नया ब्लॉग पर कुछ लिखा है
आप देख सकती है.
http://quyamat.blogspot.com/
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ek achhi rachna... achhi sonch ke sath...
रचना जी,
वृक्षों के बहाने बहुत ही अच्छी सीख देती हुई कविता प्रेरणादयी है।
शब्द संयोजना भावों में चार चाँद लगा देती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
rachanaji
aap bahut achchhi kavitayen likhti hain. keep it up.
aapki rashnayen mujhe kaphi pasand aayi.....
ummed hai ki aap aisa hi achchha likhate rahe.
bahut khub
वास्तव में उत्सर्ग की ओर बढ़ते हुए कदम....बधाइयाँ..
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