हां! उसका हुआ जो आज बिस्तर में पड़ा है
फटे सिर के हिस्से में टांके जड़े
जीवन के टूटे पलों को सीता
घटित हुआ उसी सड़क पर जहां
नित नई चेतना लंगड़ी होती है
सड़क की आवाजाही और
चिलचिलाती धूप में
टक्कर खाती त्रस्त धूल थी,
चश्मदीद गवाह उसकी
न रफ्तार तेज़ थी,
न मादक पेय से था बोझिल शरीर
वहां तो बेलिहाज़ गाय के
अस्थिर कदम थे आगे
यकायक अन्र्तरात्मा की आवाज़
बचाओ इसे बचाओ
और खेल गया अपनी जान पर
उसकी बचाने के लिए दर्द,
कराह, रोम रोम की
पीड़ा इस सोच के आगे
एक खामोश अतृप्त सांत्वना
दे रही थी उसको
एक जीवन की रक्षा अपनी सुरक्षा
से बड़ी लगी थी उसे
क्योंकि मिल गई थी उसे
निशब्द दुआ निरीह की
जो आशीर्वाद स्वरूप
तमाम जख्मों पे मरहम बनी थी
7 टिप्पणियां:
बहुत मनभावन रचना बधाई ..
Nice poetry.
bahut umda rachna
umda rachna. wah.
apne liye jiye to kayaa jiye.to jee ye dil jamaane ke liye.
jamos jhalla
jhallikalamse
angrezivichar
मनभावन रचना
बधाई ..
शमा जी सदर नमस्कार बहुत ही खूब शूरत रचना मानवीय संवेदनायो को जिस तरह से भावनायो की तीव्र चोट दी है बहुत ही अनुपम है मरी बधाई स्वीकार करे और मेरी कविता भारत के गद्दारों को पढ़े
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
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