ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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गुरुवार, 5 मार्च 2009

दस्तक

दो परिन्दों को यूं चोंच से चोंच मिलाते देखा
इंसानों को घरों में दीवारें उठाते देखा

अक्सर सफ़र में दृश्यों को पीछे भागते देखा
कुछ लोगों को आधा ज़मीं में आधा बाहर देखा

मौज़ों को किनारों से अठखेलियां करते देखा
तूफान आने पर अपनों को किनारा करते देखा

मुद्वतों बाद दरवाजे पर तेरे दस्तक हुई ‘भारती’
न आया था कोई यहां इसे किस्मत को बजाते देखा

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

मज़ार

आये थे मज़ार पर वो,
दुनियां बदल जाने के बाद।
सर झुकाया भी तो,
हमारे गुज़र जाने के बाद।
अरमां ये थे रू-ब-रू हो,
कुछ तो कह देते ।
बुदबुदाए भी आखिर तो ,
दम निकल जाने के बाद।
हुआ रश्क भी उन पर तो,
फितरत बदल जाने के बाद।
किया इज़हार भी तो,
अलविदा ! कहने के बाद।

सोमवार, 1 सितंबर 2008

खुदा के फ़ज़ल से

जिसे भी कुछ मिला है खुदा के फजल से
खानाबदोशियां भी खुदा के फजल से

गिद्धों ने भी कहीं बनाए हैं घोंसले
सारा जहां गिद्ध बना खुदा के फजल से

बेबाक न होइए मंजर जिन्दगी देखकर
सदा सुन लेगा कोई खुदा के फजल से

सब्र बड़ा चाहिए ऐतबार भी
‘भारती’
सब कुबूल होगा खुदा के फजल से

सोमवार, 25 अगस्त 2008

अक्सर इन्सान गिरगिट ..........

अक्सर इन्सान गिरगिट बन जाते हैं

मतलब के लिए रंग अपना दिखाते हैं
मौज़ों को साहिल से जोड़कर फिर

भँवर में फँसने का इल्ज़ाम लगाते हैं।
ग़मज़दाओं को ग़महीन बनाने के लिए

कुरेद कर ज़्ख़्म उनके हरे कर जाते हैं ।
कुर्सी के लिए चूसकर रक्त का क़तरा-क़तरा

मरणोपरान्त मूर्तियाँ चौराहों पर लगाते हैं।
रखते हैं गिद्ध दृष्टि दूसरों की बहू-बेटियों पर

अपनी बेटी को देखने वालों के चश्में लगाते हैं।
मुद्दतों से ख़तो-क़िताबत करने वाले

गुनाह करके कैसे अंजान बन जाते हैं।