एक झिंगुर आया
मेरी तर्जनी उठी उसे
उसकी दिशा में नचाया
गोल गोल वर्तुलाकार
भयभीत सी आंखें
विचलित मन:स्थिति थी
कभी वो नीचे तो मैं
पलंग पर चढ़ी थी
गोल चमकती आंखों से
उसने मुझको देखा
मैं तो बहुत छोटा हूं
मुझ से भय कैसा
राम हनुमान सभी पुकारे
लोग कमरे में बैठे सारे
कोई नहीं मदद को आया
झिंगुर ही दिमाग में
वो पंक्तियां लाया
जो अपनी मदद आप हैं करते
भगवान भी उनकी मदद को आ धमकते
15 टिप्पणियां:
सुन्दर सन्देश,
मगर झींगुर बेचारा
खाम-खा गया मारा....
झींगुरी माया.
अपनी मदद आप करने वाले को भगवन भी सहायता प्रदान करते हैं ...
जान लिया ..!!
बढिया!
chaliye jhingur ke bahane bhagwan to yaad aaye....
sachcha sandesh deti hui rachna.....badhai
:)
झिंगुर पर लिखी कविता अच्छी लगी।
लगता है ये कविता आपने झींगुर से प्रेरित होकर लिखा है | अच्छी लगी!!!
गोल चमकती आंखों से उसने मुझको देखा मैं तो बहुत छोटा हूं मुझ से भय कैसा
रचना जी मेरे ब्लॉग पर आने और सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार
वाह जी वाह क्या किस्मत पायी इस झींगुर ने
आभार रचना दीक्षित
bhut achchhi kavita lagi
maim mai bhi blog par aa gya hoon
bahut badhiya
jhingur ne agar apni pyaari si 'chiki-miki' ki dhwani nikali hoti, to shayad kissa kuchh aur hi hota.
hindi mein tippani (comment) likhna batayen!
झींगुर से प्रेरित होकर यह कविता वास्तव में ही सराहनीय है.
महावीर शर्मा
Very good mam
this is a good & nice poem
rashmidixit 7 samblog-sanjay. blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें