आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएं
कुछ ताजिये ठंडा करें
कुछ गणेश प्रतिमाएँ विसराएँ
बारम्बार रीतियों के चक्र में
कुछ नीतियों को खोदें
कुछ को दफनाएं
स्थिर प्रकृति के चलचित्रों से
इनको थोड़ा अलग बनाएं
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
ऊँचे ढकोसलों की ऊहापोह में
इंसान से गिरता इंसान बचाएं
ठकुरसुहाती सुनने वालों को
उनका चरित्र दर्पण दिखलाएं
होगा न रंगभेद डुबकी लगाने से
सागर में थोड़ी नील मिलाएँ
नीले अंबर से सागर का समागम करवाएं
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
8 टिप्पणियां:
bilkul sahi kataakch..bahut umda.
achha hai
bahut achha likha hai aapne
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
paramparaon par sahi prahar.
सागर में थोड़ी नील मिलाएँ
bilkum adbhut parikalpana hai.
badhai
Ek hi shabd kahungi....behtreen rachana
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएं
कुछ ताजिये ठंडा करें कुछ गणेश प्रतिमाएँ विसराएँ बारम्बार रीतियों के चक्र में कुछ नीतियों को खोदें कुछ को दफनाएं
स्थिर प्रकृति के चलचित्रों से इनको थोड़ा अलग बनाएं
pragativaadi rachna sarahneey hai. badhaai.
teekha hai aur umdaa hai !!
brilliant !!
अति सुंदर मन खुश हो गया आपकी सभी रचनाओं को पढ़ कर आप मेरे पास शब्दों की कमी हो गई है आपकी तारीफ करने के लिए ...धन्यवाद
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