मंगलवार, 14 जुलाई 2009
हालात
आज हर आदमी रोटी को
मोहताज़ बना कुछ ढूंढ रहा है
उसकी वो मिठास जो कहीं पर
खो गई है शायद,काश मिल जाए
हर किसी की रोटी से तोड़ता है
एक कौर कि कहीं इसमें तो नहीं
आज समय कुछ ऐसा है जब
कड़ी मेहनत से पसीना बहाकर
आज के कोलाहल की प्यास वो
रिश्तों की बली से बुझा रहा है
माहौल कुछ बन गया ऐसा कि
गुज़र बसर की जगह के लिए
लाशों को किनारे लगा रहा है
अपनी भूख प्यास मिटाने के लिए
देखो आदमी आदमी को खा रहा है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
11 टिप्पणियां:
आज हर आदमी रोटी को
मोहताज़ बना कुछ ढूंढ रहा है
उसकी वो मिठास जो कहीं पर
खो गई है शायद,काश मिल जाए
हर किसी की रोटी से तोड़ता है
एक कौर कि कहीं इसमें तो नहीं
कितना खूबसूरत लिखा है आपने.....
बहुत खूब - खासकर आपने तो अंत में धमाका कर दिया है।
मजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत
रोटी बड़ी या मजहब हमको जरा बताना
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ओह!! बहुत चोट पहुँचाती रचना!
बिलकुल ठीक ..अपनी भूख मिटने को आदमी आदमी को खा रहा है ..!!
बहुत गहरी और मार्मिक रचना.
रामराम.
वाह क्या खूब लिखा है आपने , शब्दों को कितने अच्छे ढंग से सजाके आपने जैसे एक माला बना दिया . आपने इन् चाँद लाइंस में ही सबकुछ लिख दिया है . बहूत खूबसूरत लिखा है
बिल्कुल सही लिखा है आपने, आज आदमी अपनी भूख मिटाने को, आदमी को खा रहा है ..!!
फिर भी आज, आदमी भूखा सा नज़र आ रहा है, इतना करने पर भी वो अपनी भुख नही मिटा पा रहा है......
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने......
राजेंदर
http://rajenderblog.blogspot.com
अपनी भूख प्यास मिटाने के लिए
देखो आदमी आदमी को खा रहा है
बिलकुल सटीक लिखा है... बधाई..
Blog par bahut kam aa pata hun. isliye bahut der se aapse mulakat huyee. aapki Rachaayen vastav me sunder hain. halanki abhi bahut thodi rachnnaye pad paaya hun.
mam mere paas shabd nahi hain aapki taarif karne ke liye.main aapko badhai deta hun.aapki lekhan shaili kafi umda hai.
sachi bat ye hai ki kavita sitri man me hi upajati hai
lekin aapke bhav sundar hone ke bavjood shabd kasey jane ki gunjaish rakhte hain
एक टिप्पणी भेजें