कविता मेरी धड़कनों से
दर्द को समेट लाती है
जब मेरे हृदय कैनवास पर
दर्द पूरे फैलाव में होता है
कोई अजन्मी आकृति स्पर्श कर
पानी की लहरों पर चलती है
मैं देखती रह जाती हूं बस
ज्वार भाटे में उसकी टूटती छवि
पानी की सिलवटों को पकड़
चादर की तरह तानने की कोशिश में
मगर असफल रह जाती हूं, क्योंकि
आ जाती है दर्द की एक और लहर
रविवार, 17 मई 2009
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14 टिप्पणियां:
dard itna kahan se lati ho
ye lahar si kahan se laati ho
inka udbhav kahan se hota hai
umda , rachna jo tum banati ho
bura na manana tum likh raha hun, rachna bahut achchi lagi raha nahin gaya aur turant ye panktian likh din.
रचना जी,
अभिवंदन
दर्द की लहर में वाकई दर्द की लहर है.
कविताएं सच में धडकनों से दर्द को समेत कर लाती हैं और हम बार बार उन्हें एज आईने की तरह देखते (पढ़ते ) हैं.
बहुत अच्छा .
- विजय
rachnaji aapki har rachna umda hoti hai , yah bhi bahut achhi hai
BADHAI
क्या बात है रचना जी, इतना दर्द??
लहर पर लहर दर्द की। यही तो जीवन है।
दर्द का आना जाना ही तो जीवन का नाम है..बहुत अच्छी रचना.
आपकी रचना वास्तव मे बहुत अच्छी है. सही मे इस तरह का दर्द आप अपनी कविताओं मे कहाँ स लाती हैं ?
Sacty kaha aapne,bhavatirek hee kavitaon ko janm deti hain....
Sundar rachna....
bahut achchhi rachna
dard liye huye
यह कविता वास्तव में दिल को छू रही है.
dard ye jindgi nasoor ban jati hai .
dard me n jiya kar dard jindgi ko khaamosh bna deti hai.
कविता मेरी धडकनों से
दर्द को समेट लाती है...बहुत गहरे भाव,मैं आज आपके ब्लॉग पे पहली बार आया..बहुत अच्छा लगा.आप बहुत सुन्दर लिखतीं हैं.कभी मेरे ब्लॉग पर आइए आपका स्वागत है..
achi rachna hai. isi taarah likhti rahiye. kavita ke liye aap mera blog pawankumarpks.blogspot.com bhi pad sakti hain
पानी की सिलवटों को पकड़
चादर की तरह तानने की कोशिश में
मगर असफल रह जाती हूं, क्योंकि
आ जाती है दर्द की एक और लहर
bhut sundar bhavabhivykti.
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