कटी फ़टी ज़िन्दगी सी
फटी फटी दरारों के साथ
टुकड़ों टुकड़ों में बंटी भूमि
अंतर्मन से आती आवाज़
मैं कितनी प्यासी हूं
मेरी प्यास बुझाए कोई
ऐसे में आस्मां से गिरकर
कोई बूंद सीने में समाती है
गर्मी की भभक से तब
अपनी आह वो बताती है
ये आह है उसके सुख की
तृष्णा उसकी नज़र आती है
कितना विशाल हृदय उसका
किसान का पसीना पीकर
फसल सीने पर उगाती है
इसका कोई वजूद नहीं
बस मालिक की धरोहर बन
पास जिसके वो होती है
उसी की बन जाती है
साक्षी हैं पन्ने इतिहास के
सिंघासनों के खेलों में
सीने कोे मैदान बनाकर
हार जीत के साथ में
रक्त रंज़ित हो जाती है
कटते सिरों गिरती लाशों के
नज़ारों को भी देखती है
उसी प्यास से उसी आस से
उसने तो पानी मांगा था
पानी के बदले खून मिला
प्रकृति के झरनों में भी क्या
आज रक़्त की धार बहती है
रंगों और क़िस्मों के विभेद ने
इसको अप्राकृतिक बनाया है
सुनो कराह कोई इसकी भी
सीने पर इसके सर रख के
कुछ शब्द सुनाई देते हैं
मैं प्यासी हूं मैं प्यासी हूं
मुझे खून नहीं पानी दे दो
एक बूंद के लिए मैं प्यासी हूं
मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
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20 टिप्पणियां:
धरती माँ की इस मुश्किल को अगर सब समझ जाते तो आज भारत का ये हाल न होता । आपने काफी मार्मिक ढंग से इसे पेश किया है । जो मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि आज के ज़माने में कौन ऐसा सोचता है ....
सुंदर प्रयास .सुंदर रचना .
dharti ki pyaas ko mukharit kiya,har shabd me ek pyaas hai,bahut badhiyaa
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है।बहुत बढिया रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।
सुंदर रचना ... अच्छी प्रस्तुति।
... सुन्दर रचना।
सुनो कराह कोई इसकी भी
सीने पर इसके सर रख के
कुछ शब्द सुनाई देते हैं
मैं प्यासी हूं मैं प्यासी हूं
मुझे खून नहीं पानी दे दो
एक बूंद के लिए मैं प्यासी हूं
Umda...behad khubsurat bhavnatmak pukar DHARTI ki pyas ki...
आपकी रचना सुन्दरतम है ा इसके मै प्रभावित हुआ ा आप हिन्दी साहित्य में बहुत अच्छी जानकारी रखती है ा मै भ्ाी कुछ आपसे सिखना चाहता हूॅ ा
बहुत ही सुन्दर रचना है! काश मै आपके घर के पास होती तो आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त कर ती ! आप का कमेन्ट मिल ने पर मेरा उत्साह दुगना हो जाता है!
dhartee ko behtar dhang se paribhashit kiya, badhaayee.
badi sunder rachna hai aap
me bhi likhta hoo. nya likhne wala hoo. journalism ka student kirpa hume bhi comments kre aur kuch nya btaye
azeebdastak.blogspot.com
pyasa dharti thi jab ambar jal-barsata tha,ab aasman hi do bund pani ko tarse to dharti ki ram kahani kya.
Meaningful Poem !!!
Keep writing
aapne bhut achchha likha hai.aapke blog se bhut kuchh janne komilta hai.aap se anurodh hai ki kripya lgatar likhti rhe.
dhrati pyasi hai . charo tarph sukha hai . ye pyas kesi hai ye koi nahi janta . na hi janna chahta hai .
Aapne bahut hi achchha likha hai. Isi prakaar likhti rahen aur hindi saahitya jagat ko samriddha karti rahen yahi meri shubh kaamnaayen hai!!
Please enable hindi in setting tab.
Jyoti Kothari
this poem is really nice considering the environmental changes and global warming we are facing. organisations like WWF should use these poems to publicize their events.
saath hi aapke tippani ke liye dhanyawad! :-)
prayatna karunga ki agli har kavita me aapki prashansa le saku.
सादर प्रणाम ,रचना जी अंदर तक कचोट गया मेरा मन ,अपनी धरती माँ से यु तो मैं बतियाता रहता हूँ ,पर जैसे मम्मी को कभी कभी रात मैं सोने से पहले मूव लगाता हूँ ताकी उन्हें अच्छी से भरपूर नींद आ जाए ,एसा कुछ अपनी धरती माँ के साथ नही कर पाता, ............................बहुत शुक्रिया ,माँ के सारे बच्चे नींद से जग जाए इसी उम्मीद के साथ ..................आपने इस नाचीज़ को जो वक्त दिया सो तहे दिल से शुक्रिया
very good suman loksangharsha
very good suman loksangharsha
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