आज रेगिस्तान में इन्कलाब आ गया
जिससे टिककर सोए, टीला वो कहां गया
निशान तक मिटा दिए चंचल अनिल ने
पद्चिन्ह छोड़े थे जहां वो रस्ता कहां गया
रूठी रश्मियां चांद की, वहां जुगनू आ गया
पथभ्रष्ट होने लगे वो चांद कहां गया
दूर भागते थे उनसे परिचय बढ़ा लिया
स्वार्थी क्यों दिखने लगे सदाचार कहां गया
इंसा की बात नहीं छल प्रकृति में आ गया
दूर से दिखा था जहां वह पानी कहां गया
इंसा मृग बना यहां तृष्णा में आ गया
हुआ जब भ्रमविच्छेद, धरातल पर आ गया
रौशनी में हम थे जब, साया हमसाया था
अंधेरे में डूबे तो वो साया कहां गया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
22 टिप्पणियां:
बहुत से सुन्दर विचारों का गुलदस्ता है आपकी ये ग़ज़लनुमा कविता, रचना जी। आभार।
मुझे कविता की ज्यादा समझ नही है पर पढ़कर मन में यही आया "उत्कृष्ट !!"
नमस्कार रचना जी ,
आज आपकी किसी जगह टिप्पणी देखकर आपकी रचनाओं तक पहुंच गया , काफ़ी पढी भी
कोटा मे हुये तीन दिवसीय नाट्य समारोह का संचालन करते हुये, शहर मे एक ओडीटोरियम की माग के संदर्भ मे कुछ एक मुक्तक लिखने मे आये - देखियेगा
ये नाटक ये रंगकर्म तो ,
केवल एक बहाना है
हम लोगों का असली मकसद
सूरज नया उगाना है
कभी मुस्कान चेहरे से हमारे खो नहीं सकती
किसी भी हाल मे आंखें हमारी रो नही सकती
हमारे हाथ मे होंगी हमारी मंजिलें क्योंकि
कभी दमदार कोशिश बेनतीजा हो नही सकती
दुनियाभर के अंधियारे पे , सूरज से छा जाते हम
नील गगन के चांद सितारे , धरती पर ले आते हम
अंगारों पे नाचे तब तो , सारी दुनिया थिरक उठी
सोचो ठीक जगह मिलती तो ,क्या करके दिखलाते हम
दिखाने के लिये थोडी दिखावट , नाटको में है
चलो माना कि थोडी सी बनावट , नाटकों मे है
हकीकत में हकीकत है कहां पर आज दुनिया मे
हकीकत से ज्यादा तो हकीकत , नाटको मे है
ये जमाने को हंसाने के लिये हैं
ये खुशी दिल मे बसाने के लिये हैं
ये मुखौटे , सच छुपाने को नहीं हैं
ये हकीकत को बताने के लिये हैं
डा. उदय ’मणि’ कौशिक
http://mainsamayhun.blogspot.com
bhram ka silsila sundar hai,ati aakarshak........
Bahut hi sundar abhivyakti
बहुत ही सुन्दर रचना. आप अपनी कविताओं के द्वारा जीवन के नए बिम्ब खिचतीं हैं.
... सुन्दर अभिव्यक्ति।
aap ke josh ko salaam karta hain. Blog ki duniyan main hum bhi new hain. par aap ke blog ko par nigah dali to pata chala ki hum akele nahin. Aap se guftgu kar ke sukun milega. Bas is ummid ke saath aap ka istqbaal karta hun meri Mahfil main. sagar
THANK U RACHANA JI FOR READING MY POEMS ON BLOG.
I HAVE SEEN YOUR CREATION. U WRITE BEAUTIFUL.KEEP IT UP.
WISH U MY BEST WISHES.
--AJIT PAL SINGH DAIA
Bahut achchi lagi aapki rachna.Badhai.
आप के ब्लाग पर आया था मगर बहुत देर सैर की एक शानदार फुलवारी की जिसमें मुझे हर प्रकार के फूल मिले। मैं भी इसी मूड का इंसान हुं प्लीज लिखती रहें और खूब लिखें।
बहुत उत्कृष्ट कविता लिखी है आपने। पढ़कर एक बात जो मुझे समझ में आया उस के मुताबिक ज़िंदगी की तमाम उलझनों के बीच खुशी ढूंढने की कोशिश दिख रही है इस कविता में।
सुंदर..
हौसला अफ़जाई के लिए दिल से शुक्रिया. ये नयी post देखियेगा, बात सच्ची और अच्छी लगे तो आवाज़ में आवाज़ मिलाइयेगा..
http://shubhammangla.blogspot.com/2009/04/breaking-news.html
bahut khubsurat hai
बहुत सुन्दर रचना...बधाई.
achha laga!!
JAHAN HA JAYE RAVI VAHA JAYE KAVI
AAPKEI RACHA AUR VICHAR SUNDER AUR SHRESHT HAIN, KAVITA KE BAARE MAIN MERA ANUBHAV KUCH KAM HE RAHA HAIN, LAKIN BHAVNAO KO SAMJ SAKTA HU.
SWAGAT AUR SUBHKAMNAE
SANJAY
bahut accha . vicharo ko bahut hi ache tarike se present kiya gaya hai.
Rachna ji,
Aapko wo kavitayen uske blog sahit save kar leni chahiye thi...agar ham virodh nahi karege to ye choriyan badhti jayegin.
Haan nazm bhot acchi lagi...!!
नमस्कार रचनाजी...सबसे पहले आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद....बहुत ही सुंदर रचना है आपकी 'रेगिस्तान में इंकलाब आ गया'...आपकी बगिया कविताओं से काफी समृद्ध है...
बहुत ही सुंदर रचना है आपकी.
आप अपनी कविताओं के द्वारा जीवन के नए बिम्ब खिचतीं हैं.
एक टिप्पणी भेजें