दो परिन्दों को यूं चोंच से चोंच मिलाते देखा
इंसानों को घरों में दीवारें उठाते देखा
अक्सर सफ़र में दृश्यों को पीछे भागते देखा
कुछ लोगों को आधा ज़मीं में आधा बाहर देखा
मौज़ों को किनारों से अठखेलियां करते देखा
तूफान आने पर अपनों को किनारा करते देखा
मुद्वतों बाद दरवाजे पर तेरे दस्तक हुई ‘भारती’
न आया था कोई यहां इसे किस्मत को बजाते देखा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
13 टिप्पणियां:
मुद्वतों बाद दरवाजे पर तेरे दस्तक हुई ‘भारती’
न आया था कोई यहां इसे किस्मत को बजाते देखा
..बधाई.
बहुत अच्छी रचना.
चंद लाइना आपकी रचना के नाम-
क्या नींद आए उसको, जिसे जागना न आए.
जो दिन को दिन करे, वो करे रात को भी रात.
बहुत अच्छी रचना. .....
आपकी कविताओं में भाव अच्छे हैं, लेकिन सिर्फ तुकबन्दी से बचें। मेरी ओर से शुभकामनाएँ।
बहुत अच्छी रचना- बधाई
आपने सही देखा लेकिन कुछ कम देखा
रचनाा विचारण्ीय लगी
रचना जी,
आपकी कवितायें काफी अच्छी हैं । मैं एक मासिक समाचार पत्रिका खास बात नाम से एवं खुलासा टाइम विजन नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र निकालता हूं , आप इजाजत दें तो उसमें आपकी कवितायें प्रकाशित करना चाहूंगा ।
मेल करें
khasbaat@in.com
Ph.-09839067621
kuchh logon ko aadha jamin me aadha baahar dekha.sach hai aajkal log chehre par mukhota odhe rahte hain.pata nahi chalta kaun sahi hai kaun galat.holi ki badhai.
bahut acha likhti hain aap. ye rachna bahut achi lagi. badhai ho.
तूफ़ान आने पर अपनों को किनारा करते देखा...ये लाइन ही सब कुछ कह देती है....आजकल यही सब हो रहा है...जिसका पर्तिबिम्ब आपकी कविताओं में दीखता है...
यह भी एक सुन्दर रचना.
पहले तो मै आपका शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी और आपनॆ बहूत ही सुन्दर रूप से हिन्दी मे कैसे लिखू ये विस्तारित रूप मे बयान किया है उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया ! मै आपका ब्लोग रोज़ाना पड्ती हू और मुझे बहुत अच्छा लगता है! मै पहली दफ़ा हिन्दी मै लिख रही हू (कमेन्ट) इसलिए अगर शब्दो मै गलती हो तो माफ़ कीजियेगा !
रचना जी,आपकी रचनाएं बहुत अच्छी हैं बधाई हो।
एक टिप्पणी भेजें