
देखी हैं डालियों पर झूमती हुईं पत्तियां
कहीं हल्की तो कहीं गहरी होती पत्तियां
पीले जर्द़ पत्तों की डाह सहतीं पत्तियां
मगर पीले पत्तों का बेजुबान दुख
हवा से थर्रायी, थकीं, ज़मीन ढकती पत्तियां
उम्र के आखिरी पड़ाव से जूझती
कसमसाती पीली पत्तियां
पेड़ से गिरीं, अपने ही आशियाने की
तुलसी बनीं पत्तियां
हरी पत्तियों में शामिल होने को बेचैन
राह तकतीं पत्तियां
कुछ राहगुज़रों के पैरों रौंदी
आप-बीती दोहराती पत्तियां
कहने को दोनों ही बेजुबान मगर
शारीरिक भाषा में अपनी पीड़ा बताती
और बताती मस्तियां
डाल से जुड़ने से हर्षयुक्त
आन्दोलित हरी पत्तियां
वहीं अतीत की यादों से जर्द पीली पत्तियां
घर में कूड़ा लगतीं, बुहारी जातीं पीली पत्तियां
लेकिन मृदा में दबी खाद में तब्दील उत्सर्गी पत्तियां
खुदा हमें डाल से वहीं गिराना
जहां हम भी बन जाएं उत्सर्गी पत्तियां
8 टिप्पणियां:
खुदा हमें भी वहीं भेज
जहां हम बनें उत्सर्गी पत्तियाँ ।
वाह, पीली पत्तियों के बहाने आपने बूढे लोगों की व्यथा कथा कह दी ।
बहुत सुंदर भाव.
सुंदर अभिव्यक्ति.
हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
रचना गौड़ ’भारती’ जी
नमस्कार !
अनोखी कविता है …
हरी पत्तियों की तरह प्रसन्नता बांटती हुई मन की उदासी को सूखी पत्तियों की भांति उड़ा ले गई ।
वाह वाऽऽह वाऽऽऽऽह !
आपके ब्लॉग पर आपकी अन्य रचनाएं भी पढ़ीं , जो बहुत पसंद आईं ।
और श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
sach kaha rachana ji hum bhi apne jiwan me in pattiyo ki tarah hai ....jo hawa se jivan ke hal chal se prabhawit hote rahte hai
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
सुन्दर और सत्याभिव्यक्ति...!!
आपको नव वर्ष की सादर शुभकामनाएं.
तुम क्यूँ न हुए मेरे ........
तुम बिन जीना मुहाल,
तुम बिन मरना भी मुश्किल.
आँखों की उदासी सब कह दे,
जो न कह पाया ये दिल.
दिल ने तो सब कह डाला था,
पर तुम ही समझ नहीं पाए.
वो लफ्ज़ नहीं तुम सुन पाए,
जो लफ्ज़ जुबां तक न आए.
क्या करूँ शिकायत अब तुमसे,
जब फर्क नहीं पड़ने वाला.
कोरी पुस्तक के लिक्खे को,
है कौन यहाँ पढने वाला.
भीगी आँखें जो पढ़ न सका,
वो कहा सुना क्या समझेगा.
बस अपने मन की कह देगा,
बस अपने मन की कर लेगा.
कुछ नहीं पूछना है तुमसे ,
उपकार बहुत मुझ पर तेरे,
बस इतना मुझको बतला दो....
तुम क्यूँ न हुए मेरे...
तुम क्यूँ न हुए मेरे .........
V.B. Seriese.
Aaiye mere blog par aapka hardik swagat hai.
bahut achchi kavita hai rachna ji
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