
प्रियतम
मधु रंजित अधरों पर प्रियतम
आया नाम तुम्हारा प्रियतम
प्रतिबिम्बित नयनों के दर्पण
तुमको किया हमने मन अर्पण
बिन दुल्हन के सूनी देहली
प्रियतम बिना न आए नवेली
कुम कुम बरसा आयी शाम
जिन्दग़ी कर दी तुम्हारे नाम
मन में ऐसे बसे चितचोर
कर गए हमको भाव विभोर
क्षण-क्षण आया ऐसा आलम
होठों से निकला प्रियतम! प्रियतम!
वैलेन्टाइन दिवस पर मेरी सभी को शुभकामनाएँ
12 टिप्पणियां:
मन में ऐसे बसे चितचोर
कर गए हमको भाव विभोर
सुन्दर भाव और सामयिक भी
बहुत दिनों बाद...एक अच्छी रचना के साथ.
अब नियमित हो जाईये.
होठों से निकला प्रियतम! प्रियतम! nice
sunder bhav, anukool mahaul, pyar bhari dilkash rachna.
bahut sundar
bahut aachi rachna hai, likhate rahai
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रचना जी .
अति प्रशंसनीय रचना ।
वह वाह ,बहुत खूब
bahut hi khoobsurati se likha hai apne...
shukriya share karne ke liye..
mere blog par b swagat hai apka...
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mujhe aapse dosti karni hai...
contact me 9828130409 ya orkut par aaye mera is s30409@gmail.com hai
सुन्दर भाव और सामयिक भी
बहुत अच्छी रचना है मै कैसे करू मेरा जीवन धन्य हो गया
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