शब्दों के जरिये मत तोलो
एक हूक सी उठी है अंदर
जिसे न चाहकर भी महसूस करो
बहुत हैं तुम पर जहां लुटाने वाले
मत सोचो अरमानों को ऐसे
मन की अगन बुलाती है
तुम चुपचाप गुजर जाओं बस
आहट पर तुम्हारी दुआ न आए
हम सोच भी न सकेगें कभी
शरबती आंखों की झील में
डुबोकर अपने को हिलोरें ले लो
दूरी से न ये टूटेगी डोर कभी
सपनों को छुपा लो आंचल मे
गज+ब होगा न कोई अब
तुम धीरे से चले जाओ
लेकिन एक गुजारिश है तुमसे
मन की इस मीठी चुभन को
शब्दों के जरिये मत तोलो
6 टिप्पणियां:
बेहतरीन रचना!
बहुत ही भावुक और सुंदर रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गई!
'मन की मीठी चुभन को
शब्दों के जरिये मत तोलो'
- सुन्दर.
bahut bhavmayi rachna...badhai
aapne apni patrika ke liye gazal maangi hai.shukria.main zaroor bhejungi.
aap is kaam ke liye badhai ki paatra hain.
aapki chubhan ko koi bhi sahityapremi dil se to tol sakta hai na? kyonki zazbaat hamesha dil se talluq zyada rakhte hain.
आपने बहुत संदर रचना लिखा है
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