धुल जातें हैं मगर
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
दीवारों की दरारें तो फिर भी
पट जाती हैं मगर
पड़ गई दिल की दरार
को पाटना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
जिस्म के बैर तो फिर भी
मान जाते हैं मगर
रुह के बैर को
मनाना आसान नहीं
तपती दुपहरी में फिर भी
मिलते हैं कुछ अपने मगर
गुजरती शामों के सायों मे
उन्हें भुलाना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
टूटते रिशते नई दिशा में फिर भी
जुड़ जाते हैं मगर
ख्वाहिश की चरमराती यादों में
तुम्हें भुलाना आसान नहीं
नजरों के दामन में लगे दागों
को धोना आसान नहीं
9 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा रचना...वाकई आसान नहीं..बढ़िया भाव!
नजरों का दामन..
क्या खूबसूरत भाव है...बधाई
आसन नहीं .........बेशक आसन नहीं ............जी आभार
वाह रचना जी क्या बात है, बहुत सुन्दर लाजवाब रचना,।
waah..kya baat hai...bahut achhi kavita
वैसे ही जैसे की दूसरो की नजरों में गिरकर उठाना आसान है बनिस्पत अपनी नजरों में गिरने के ..!!
बेहतर कविता ..!!
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
bahut achhi kavita hai aapki rachnaji.sach main aap sahitya jagat ko ujjawalit kar rahi hain.
आँख से टपके जो आँसू लौटकर आए नहीं
जो गिरे एक बार नज़रों से वो बेगाने हुए
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