बुधवार, 5 अगस्त 2009
सावन की बदली
पिव का हिंडौला मोरे द्वार पर आया रे
मेघों तुम सावन के मोती बन बरसों रे
बरसों के बाद ऐसा मौका है आया रे
पिव का हिंडौला मोरे द्वार पर आया रे
बिखरी घटाओं को ऐसे तुम बांध लो
मस्त फिं़ज़ाओं को झूम के निहार लो
पिव का हिंडौला -----------
पपीहे के पिहुंकने से मन है डोले रे
बरखा की रिमझिम में तन मोरा भीगे रे
खुशनुमां मौसम में पड़ गए हैं झूले रे
कोयल के कूकने से मोर भी है नाचे रे
पिव का हिंडौला ------------
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6 टिप्पणियां:
सावन मेघ और वर्षा के साथ हिडोलो का रचना में समावेश बहुत ही अच्छा लगा. बधाई और शुभकामना रक्षाबंधन पर के अवसर पर.
बधाई और शुभकामना रक्षाबंधन के अवसर पर.
बहुत सुन्दर गीत!!
रक्षा बंधन के पावन पर्व की शुभकामनाऐं.
आपको रच्छाबंधन की ढेर सारी शुभकामनायें
बहुत सुन्दर रचना.
रक्षा बंधन के पावन पर्व की शुभकामनाऐं
Aapne Barkh Ki Rimjhim Ki Baat Ki Hai ....Shayad Wahan Barish Ho rahi Hai .......Shukriya Is Thande Ehsaas ka .........
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