कविता मेरी धड़कनों से
दर्द को समेट लाती है
जब मेरे हृदय कैनवास पर
दर्द पूरे फैलाव में होता है
कोई अजन्मी आकृति स्पर्श कर
पानी की लहरों पर चलती है
मैं देखती रह जाती हूं बस
ज्वार भाटे में उसकी टूटती छवि
पानी की सिलवटों को पकड़
चादर की तरह तानने की कोशिश में
मगर असफल रह जाती हूं, क्योंकि
आ जाती है दर्द की एक और लहर
रविवार, 17 मई 2009
रविवार, 10 मई 2009
दिल एक कब्रगाह
दिल एक कब्रगाह]
जिसमें अरमान बड़े हैं
वक्त शाश्वत सत्य बना
इसमें सत्याग्रही बड़े हैं
लोहे से तुलना करने पर
चोटें, दिल पे अधिक हुई हैं
कनक के आगे रखकर देखूं
दिल की अग्निगुहा बड़ी है
फिर भी दुनियां बातें गुनती
दिल चीज़ नरम बड़ी है
मां की लुटी ममता के आगे
स्त्री की सूनी कलाई के आगे
बहन की टूटी राखी के आगे
बेटी के सूने पीहर के आगे
इसकी नरमाई थमी है
यहीं से दिल की कोमलता
एक शिला बनी है
टूटे अरमान यहां टूटी हसरतें हैं दिल एक कब्रगाह
अब हुआ इस पे यकीं हैं
जिसमें अरमान बड़े हैं
वक्त शाश्वत सत्य बना
इसमें सत्याग्रही बड़े हैं
लोहे से तुलना करने पर
चोटें, दिल पे अधिक हुई हैं
कनक के आगे रखकर देखूं
दिल की अग्निगुहा बड़ी है
फिर भी दुनियां बातें गुनती
दिल चीज़ नरम बड़ी है
मां की लुटी ममता के आगे
स्त्री की सूनी कलाई के आगे
बहन की टूटी राखी के आगे
बेटी के सूने पीहर के आगे
इसकी नरमाई थमी है
यहीं से दिल की कोमलता
एक शिला बनी है
टूटे अरमान यहां टूटी हसरतें हैं दिल एक कब्रगाह
अब हुआ इस पे यकीं हैं
शनिवार, 2 मई 2009
फिर चुनाव.........
फिर चुनावी सरगर्मियां शुरु होंगी
हलवाई की दुकान की मक्खि़यां उड़ेंगी
कम्ब़लों की एक बार फिर गांठें खुलेंगी
कौए भी मुंडेरों पे बोला करेंगे
हर सुबह कोई न कोई उम्मीदवार मिलेंगे
हर पार्टी की अपनी टकसाल होगी
हांडी में मुर्गी ,तंदूर पे रोटी सिकेंगी
बेचारे सरकारी अफसरों की ड्यूटी लगेंगी
मंहगाई का नाग ज़ोरदार फ़नफ़नाएगा
मूंगफ़ली भी काजू के दाम बिकेंगी
नेताओं के कुछ वादे कुछ झूठी कस्में मिलेंगी
चिल्लाएंगे जोर-जोर से गरीबी हटाओ-2
उनकी ची्खें दीवारों से टकरा उनके कानों में गूजेंगी
वोटों की बिक्री है दाम ऊंचे लगेंगे तो
गरीबों को कहां लहसुन की चटनी व रोटी मिलेगी
पट्टियां तैयार कीजिए पेट पे बांधने की अब
चुनाव का माहौल है बस चुऩावी सरग़र्मियां मिलेंगी
हलवाई की दुकान की मक्खि़यां उड़ेंगी
कम्ब़लों की एक बार फिर गांठें खुलेंगी
कौए भी मुंडेरों पे बोला करेंगे
हर सुबह कोई न कोई उम्मीदवार मिलेंगे
हर पार्टी की अपनी टकसाल होगी
हांडी में मुर्गी ,तंदूर पे रोटी सिकेंगी
बेचारे सरकारी अफसरों की ड्यूटी लगेंगी
मंहगाई का नाग ज़ोरदार फ़नफ़नाएगा
मूंगफ़ली भी काजू के दाम बिकेंगी
नेताओं के कुछ वादे कुछ झूठी कस्में मिलेंगी
चिल्लाएंगे जोर-जोर से गरीबी हटाओ-2
उनकी ची्खें दीवारों से टकरा उनके कानों में गूजेंगी
वोटों की बिक्री है दाम ऊंचे लगेंगे तो
गरीबों को कहां लहसुन की चटनी व रोटी मिलेगी
पट्टियां तैयार कीजिए पेट पे बांधने की अब
चुनाव का माहौल है बस चुऩावी सरग़र्मियां मिलेंगी
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