तू धूप बन छम से बिखर
सोये अन्तर्मन को स्पर्श कर
बिखर कर पुंकेसर सी कणकण में
रश्मियों से नवजीवन सहर्ष कर
धुंधली हो गई पारदर्शिता कुंदन की
पारस बन मूर्छित मन पुर्नजीवित कर
पसर गईं हैं दूर क्षितिज़ में आशाएं
दर्पण बन मृगमरीचिका से मुक्त कर
टुकड़े-टुकड़े धूप को हमने लपेटा
आज सूरज बन अंतः रौशन कर
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18 टिप्पणियां:
बिखर कर पुंकेसर सी कणकण में
रश्मियों से नवजीवन सहर्ष कर
धुंधली हो गई पारदर्शिता कुंदन की
पारस बन मूर्छित मन पुर्नजीवित कर
बहुत ही सुन्दर भावना, अच्छा लिखा है आपने .........
bhaavon se bhari hui rachna ...mujhe bahut achchhi lagi
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
... प्रभावशाली रचना!!!!!!!!
भावना प्रधान , अच्छी रचना .
टुकड़े-टुकड़े धूप को हमने लपेटा
आज सूरज बन अंतः रौशन कर
सुंदर भावनाएं सहज अभिव्यक्ति .
धुंधली हो गई पारदर्शिता कुंदन की
पारस बन मूर्छित मन पुर्नजीवित कर
Wah! kya khoob likha hai...
bes mam, dhoop bankar hi bikharna chahti hoo. aapne mere profile par aakar saraha ....bahut bahut shukriya
टुकड़े-टुकड़े धूप को हमने लपेटा .....बहुत ही दिल से की गयी अभिवयक्ति है...जो दिल को छूती है...
बहुत ही सुन्दर.
sadaiv kee tarah ek aur achchhi rachna.
बहुत सुन्दर. भाव पूर्ण रचना. बधाई.
रचना जी आपने बहुत अच्छा लिखा, रचना की एक-एक लाईनों में गहराई है, झकास---
आपकी पत्रिका के बारे में हमने सुना था, लेकिन संयोगवश पढने को नहीं मिली।अगर दिल्ली में किसी तरह उपलब्ध हो जाए तो अच्छा होगा।क्रिपया आप अपना ई-मेल आईडी से भी संपर्क कर सकते हैं।
सुनील पाण्डेय
नई दिल्ली
09953090154
शानदार कविता है। कृपया पुर्नजीवित शब्द को ठीक कर लें। साहित्य में अशुद्धि से प्रवाह बाधित होता है। अगली रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
अच्छी लगी कुछ और पढ़कर बताऊंगा, विस्तार से... बशीर बद्र का शेर रिमिक्स करके बोलूं तो ब्लॉगर हो तुम भी, ब्लॉगर हैं हम भी। हर पोस्ट पर अब मुलाकात होगी
पंकज नारायण
aap wakai me bahut hi gr8 rachnaye likhti hai mujhe bhi apka margdarshan pradan kariye/..........
satyarth mishra
17 years
class 12th me hu i m a new blogger
bahut sundar rachna likhi haia aapne bhaav gahare hai
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